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"ज़ौर से बाज़ आये पर बाज़ आये क्या / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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18:09, 15 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण

ज़ौर<ref>अत्याचार</ref> से बाज़ आये पर बाज़ आयें क्या
कहते हैं, हम तुम को मुँह दिखलायें क्या

रात-दिन गर्दिश में हैं सात आस्मां
हो रहेगा कुछ-न-कुछ घबरायें क्या

लाग<ref>शत्रुता</ref> हो तो उस को हम समझें लगाव
जब न हो कुछ भी, तो धोखा खायें क्या

हो लिये क्यों नामाबर<ref>संदेशवाहक</ref> के साथ-साथ
या रब! अपने ख़त को हम पहुँचायें क्या

मौज-ए-ख़ूँ<ref>ख़ून की तरंग</ref> सर से गुज़र ही क्यों न जाये
आस्तान-ए-यार<ref>यार की चौखट</ref> से उठ जायें क्या

उम्र भर देखा किये मरने की राह
मर गए पर देखिये दिखलायें क्या

पूछते हैं वो कि "ग़ालिब" कौन है
कोई बतलाओ कि हम बतलायें क्या

शब्दार्थ
<references/>