भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कुछ नमक से भारी थैलियाँ खोलिए / ओमप्रकाश यती" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओमप्रकाश यती }} Category:ग़ज़ल कुछ नमक से भारी थैलिय…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
}} | }} | ||
[[Category:ग़ज़ल]] | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
− | + | <poem> | |
− | + | ||
कुछ नमक से भारी थैलियाँ खोलिए | कुछ नमक से भारी थैलियाँ खोलिए | ||
− | |||
फिर मेरे घाव की पट्टियाँ खोलिए। | फिर मेरे घाव की पट्टियाँ खोलिए। | ||
− | |||
मेरे ‘पर’ तो कतर ही दिए आपने | मेरे ‘पर’ तो कतर ही दिए आपने | ||
− | |||
अब तो पैरों की ये रस्सियाँ खोलिए। | अब तो पैरों की ये रस्सियाँ खोलिए। | ||
− | |||
पहले आहट को पहचानिए तो सही | पहले आहट को पहचानिए तो सही | ||
− | |||
जल्दबाज़ी में मत खिड़कियाँ खोलिए। | जल्दबाज़ी में मत खिड़कियाँ खोलिए। | ||
− | |||
भेज सकता है काग़ज के बम भी कोई | भेज सकता है काग़ज के बम भी कोई | ||
− | |||
ऐसे झटके से मत चिटिठयाँ खोलिए। | ऐसे झटके से मत चिटिठयाँ खोलिए। | ||
− | |||
जिसको बिकना है चुपके से बिक जाएगा | जिसको बिकना है चुपके से बिक जाएगा | ||
− | |||
यूँ खुले आम मत मण्डियाँ खोलिए। | यूँ खुले आम मत मण्डियाँ खोलिए। | ||
+ | </poem> |
18:38, 18 अप्रैल 2010 का अवतरण
कुछ नमक से भारी थैलियाँ खोलिए
फिर मेरे घाव की पट्टियाँ खोलिए।
मेरे ‘पर’ तो कतर ही दिए आपने
अब तो पैरों की ये रस्सियाँ खोलिए।
पहले आहट को पहचानिए तो सही
जल्दबाज़ी में मत खिड़कियाँ खोलिए।
भेज सकता है काग़ज के बम भी कोई
ऐसे झटके से मत चिटिठयाँ खोलिए।
जिसको बिकना है चुपके से बिक जाएगा
यूँ खुले आम मत मण्डियाँ खोलिए।