भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रथमपतिगृहानुभवम् / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शास्त्री नित्यगोपाल कटारे }} {{KKCatKavita‎}} <poem> प्रथमपत…)
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 
{{KKCatKavita‎}}
 +
{{KKCatSanskratlokgeet}}
 +
 
<poem>
 
<poem>
 
प्रथमपतिगृहानुभवम्  
 
प्रथमपतिगृहानुभवम्  

09:43, 20 अप्रैल 2010 का अवतरण

साँचा चक्र मिला: साँचा:KKCatSanskratlokgeet

प्रथमपतिगृहानुभवम्
हे सखि पतिगृहगमनं
प्रथमसुखदमपि किंत्वतिक्लिष्टं री।
परितो नूतन वातावरणे
वासम् कार्यविशिष्टं री।।
वदने सति अवरुद्धति कण्ठं
दिवसे अवगुण्ठनमाकण्ठं।
केवलमार्य त्यक्त्वा तत्र
किंञ्चिदपि मया न दृष्टं री।।
वंश पुरातन प्रथानुसरणं
नित्यं मर्यादितमाचरणं।
परिजन सकल भिन्न निर्देश पालने
प्रभवति कष्टं री।।
भर्तुर्पितरौ भगिनी भ्राता
खलु प्रत्येकः क्लेश विधाता।
सहसा प्रियतममुखं विलोक्य तु
सर्वं कष्ट विनिष्टं री।।
अभवत् कठिनं दिवावसानम्
बहु प्रतीक्षितं रजन्यागमनम्।
लज्जया किञ्च कथं कथयानि
विशिष्ट प्रणयपरिशिष्टं री।।