भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दुआ / सफ़दर इमाम क़ादरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सफ़दर इमाम क़ादरी |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> हमारे कथा…)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
 
दुआ कुबूल हो जाती है
 
दुआ कुबूल हो जाती है
 
पहाड़ की सबसे ऊँची चोटी पर खड़े होकर
 
पहाड़ की सबसे ऊँची चोटी पर खड़े होकर
आँखें बन्द करकेहवाओं में बाहें फैलाओ
+
आँखें बन्द करके
 +
हवाओं में बाँहें फैलाओ
 
"ख़ुदा बन्दे से ख़ुद पूछे
 
"ख़ुदा बन्दे से ख़ुद पूछे
बता तेरी रज़ा<ref>ख़ुशी, इच्छा</ref>
+
बता तेरी रज़ा<ref>ख़ुशी, इच्छा</ref> क्या है?"
क्या है?"
+
 
</poem>
 
</poem>
 
{{KKMeaning}}
 
{{KKMeaning}}

20:34, 23 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण

हमारे कथाकार दोस्त
कासिम ख़ुरशीद ने पूछा
शिमले से हमारे लिए क्या लाए
आप की उन्नति के लिए
आठ हज़ार फ़ुट ऊँचाई से दुआ की
शिमला से आसमान की दूरी कम हो जाती है
अर्श<ref>ईश्वर का सिंहासन</ref> नज़दीक होता है
बन्दे और ख़ुदा के बीच की दूरी
घट जाती है
दुआ कुबूल हो जाती है
पहाड़ की सबसे ऊँची चोटी पर खड़े होकर
आँखें बन्द करके
हवाओं में बाँहें फैलाओ
"ख़ुदा बन्दे से ख़ुद पूछे
बता तेरी रज़ा<ref>ख़ुशी, इच्छा</ref> क्या है?"

शब्दार्थ
<references/>