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"सूर्य / एकांत श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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रोशनी की फूल बनकर
 
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आहिस्‍ता-आहिस्‍ता.
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--[[सदस्य:Pradeep Jilwane|Pradeep Jilwane]] 10:44, 24 अप्रैल 2010 (UTC)
 

00:22, 27 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण

उधर
ज़मीन फट रही है
और वह उग रहा है
चमक रही हैं नदी की ऑंखें
हिल रहे हैं पेड़ों के सिर
और पहाड़ों के
कन्‍धों पर हाथ रखता
आहिस्‍ता-आहिस्‍ता
वह उग रहा है
वह खिलेगा
जल भरी आँखों के सरोवर में
रोशनी की फूल बनकर
वह चमकेगा
धरती के माथ पर
अखण्‍ड सुहाग की
टिकुली बनकर
वह
पेड़ और चिडि़यों के दुर्गम अंधेरे में
सुबह की पहली खुशबू
और हमारे खून की ऊष्‍मा बनकर
उग रहा है
उधर
आहिस्‍ता-आहिस्‍ता।