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"लौटती बैलगाड़ी का गीत / एकांत श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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और केवल बबूल के फूलों की | और केवल बबूल के फूलों की | ||
महक जाग रही है | महक जाग रही है | ||
− | तब दूधिया | + | तब दूधिया चाँदनी में |
धान से लदी वह लौट रही है | धान से लदी वह लौट रही है | ||
लौट रहे हैं अन्न | लौट रहे हैं अन्न | ||
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बचपन को याद करते | बचपन को याद करते | ||
घंटियों की टुनुन-टुनुन | घंटियों की टुनुन-टुनुन | ||
− | + | गाँव की नींद तक पहुँच रही है | |
− | और सारा | + | और सारा गाँव |
अगुवानी के लिए तैयार हो रहा है | अगुवानी के लिए तैयार हो रहा है | ||
हिल रही हैं | हिल रही हैं | ||
− | अलगनी में | + | अलगनी में टँगी हुई कन्दीलें |
− | और चमक रहा है | + | और चमक रहा है गाँव का कन्धा |
− | एक | + | एक माँ के कण्ठ से उठ रही है लोरी |
− | कि | + | कि चाँदी के कटोरे में भरा है दूध |
और घुल रहा है बताशा | और घुल रहा है बताशा | ||
− | बैलगाड़ी | + | बैलगाड़ी पहुँच जाना चाहती है गाँव |
− | दूध में बताशे के घुलने से | + | दूध में बताशे के घुलने से पहले। |
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00:24, 27 अप्रैल 2010 का अवतरण
जब नींद में डूब चुकी है धरती
और केवल बबूल के फूलों की
महक जाग रही है
तब दूधिया चाँदनी में
धान से लदी वह लौट रही है
लौट रहे हैं अन्न
बचपन बीत जाने के बाद
बचपन को याद करते
घंटियों की टुनुन-टुनुन
गाँव की नींद तक पहुँच रही है
और सारा गाँव
अगुवानी के लिए तैयार हो रहा है
हिल रही हैं
अलगनी में टँगी हुई कन्दीलें
और चमक रहा है गाँव का कन्धा
एक माँ के कण्ठ से उठ रही है लोरी
कि चाँदी के कटोरे में भरा है दूध
और घुल रहा है बताशा
बैलगाड़ी पहुँच जाना चाहती है गाँव
दूध में बताशे के घुलने से पहले।