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"जाते-जाते ही मिलेंगे लोग उधर के / विनोद कुमार शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

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17:04, 27 अप्रैल 2010 का अवतरण

जाते जाते ही मिलेंगे लोग उधर के
जाते जाते जाया जा सकेगा उस पार
जाकर ही वहॉं पहुंचा जा सकेगा
जो बहुत दूर संभव है
पहुंच कर संभव होगा
जाते जाते छूटता रहेगा पीछे
जाते जाते बचा रहेगा आगे
जाते जाते कुछ भी नहीं बचेगा जब
तब सब कुछ पीछे बचा रहेगा
और कुछ भी नहीं में
सब कुछ होना बचा रहेगा.