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17:49, 27 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
आईना देख अपना सा मुंह लेके रह गये
साहिब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था
क़ासिद<ref>संदेशवाहक</ref> को अपने हाथ से गरदन न मारिये
उस की ख़ता नहीं है यह मेरा क़सूर था
शब्दार्थ
<references/>