भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अब इस उम्र में हूँ / विनोद कुमार शुक्ल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनोद कुमार शुक्ल |संग्रह= }} <Poem> अब इस उम्र में ह...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=विनोद कुमार शुक्ल | |रचनाकार=विनोद कुमार शुक्ल | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
− | |||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
<Poem> | <Poem> | ||
अब इस उम्र में हूँ | अब इस उम्र में हूँ |
00:54, 28 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
अब इस उम्र में हूँ
कि कोई शिशु जन्म लेता है
तो वह मेरी नातिनों से भी छोटा होता है
संसार में कोलाहल है
किसी ने सबेरा हुआ कहा तो
लड़का हुआ लगता है
सुबह हुई ख़ुशी से चिल्लाकर कहा
तो लड़की हुई की ख़ुशी लगती है
मेरी बेटी की दो बेटियाँ हैं
सबसे छोटी नातिन जाग गई
जागते ही उसने सुबह को
गुड़िया की तरह उठाया
बड़ी नातिन जागेगी तो
दिन को उठा लेगी।