"हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | कहता | + | रचनाकार: [[रामधारी सिंह "दिनकर"]] |
+ | [[Category:कविताएँ]] | ||
+ | [[Category:रामधारी सिंह "दिनकर"]] | ||
+ | |||
+ | ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ | ||
+ | |||
+ | कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। | ||
श्रवण खोलो¸ | श्रवण खोलो¸ | ||
पंक्ति 16: | पंक्ति 22: | ||
और तुम नींद करो¸ | और तुम नींद करो¸ | ||
− | अपने भर तो यह जुल्म नहीं होने | + | अपने भर तो यह जुल्म नहीं होने दूँगा। |
तुम बुरा कहो या भला¸ | तुम बुरा कहो या भला¸ | ||
पंक्ति 22: | पंक्ति 28: | ||
मुझे परवाह नहीं¸ | मुझे परवाह नहीं¸ | ||
− | पर दोपहरी में तुम्हें नहीं सोने | + | पर दोपहरी में तुम्हें नहीं सोने दूँगा।। |
पंक्ति 42: | पंक्ति 48: | ||
गीतों से फिर चट्टान तोड़ता हूं साथी¸ | गीतों से फिर चट्टान तोड़ता हूं साथी¸ | ||
− | झुरमुटें काट आगे की राह बनाता | + | झुरमुटें काट आगे की राह बनाता हूँ। |
है जहां–जहां तमतोम | है जहां–जहां तमतोम | ||
पंक्ति 50: | पंक्ति 56: | ||
चुनचुन कर उन कुंजों में | चुनचुन कर उन कुंजों में | ||
− | आग लगाता | + | आग लगाता हूँ। |
19:34, 19 फ़रवरी 2007 का अवतरण
रचनाकार: रामधारी सिंह "दिनकर"
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो।
श्रवण खोलो¸
रूक सुनो¸ विकल यह नाद
कहां से आता है।
है आग लगी या कहीं लुटेरे लूट रहे?
वह कौन दूर पर गांवों में चिल्लाता है?
जनता की छाती भिदें
और तुम नींद करो¸
अपने भर तो यह जुल्म नहीं होने दूँगा।
तुम बुरा कहो या भला¸
मुझे परवाह नहीं¸
पर दोपहरी में तुम्हें नहीं सोने दूँगा।।
हो कहां अग्निधर्मा
नवीन ऋषियो? जागो¸
कुछ नयी आग¸
नूतन ज्वाला की सृष्टि करो।
शीतल प्रमाद से ऊंघ रहे हैं जो¸ उनकी
मखमली सेज पर
चिनगारी की वृष्टि करो।
गीतों से फिर चट्टान तोड़ता हूं साथी¸
झुरमुटें काट आगे की राह बनाता हूँ।
है जहां–जहां तमतोम
सिमट कर छिपा हुआ¸
चुनचुन कर उन कुंजों में
आग लगाता हूँ।