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"अनाम चिड़िया के नाम / एकांत श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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गंगा इमली की पत्तियों में छुपकर | गंगा इमली की पत्तियों में छुपकर | ||
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एक चिड़िया मुँह अँधेरे | एक चिड़िया मुँह अँधेरे | ||
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बोलती है बहुत मीठी आवाज़ में | बोलती है बहुत मीठी आवाज़ में | ||
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न जाने क्या | न जाने क्या | ||
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न जाने किससे | न जाने किससे | ||
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और बरसता है पानी | और बरसता है पानी | ||
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आधी नींद में खाट-बिस्तर समेटकर | आधी नींद में खाट-बिस्तर समेटकर | ||
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घरों के भीतर भागते हैं लोग | घरों के भीतर भागते हैं लोग | ||
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कुछ झुँझलाए, कुछ प्रसन्न | कुछ झुँझलाए, कुछ प्रसन्न | ||
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घटाटोप अंधकार में चमकती है बिजली | घटाटोप अंधकार में चमकती है बिजली | ||
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मूसलधार बरसता है पानी | मूसलधार बरसता है पानी | ||
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सजल हो जाती हैं खेत | सजल हो जाती हैं खेत | ||
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तृप्त हो जाती हैं पुरखों की आत्माएँ | तृप्त हो जाती हैं पुरखों की आत्माएँ | ||
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टूटने से बच जाता है मन का मेरुदंड | टूटने से बच जाता है मन का मेरुदंड | ||
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कहती है मंगतिन | कहती है मंगतिन | ||
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इसी चिड़िया का आवाज़ से | इसी चिड़िया का आवाज़ से | ||
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आते हैं मेघ | आते हैं मेघ | ||
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सुदूर समुद्रों से उठकर | सुदूर समुद्रों से उठकर | ||
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ओ चिड़िया | ओ चिड़िया | ||
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तुम बोले बारम्बार गाँव में | तुम बोले बारम्बार गाँव में | ||
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घर में, घाट में, वन में | घर में, घाट में, वन में | ||
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पत्थर हो चुके आदमी के मन में । | पत्थर हो चुके आदमी के मन में । | ||
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18:19, 28 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
गंगा इमली की पत्तियों में छुपकर
एक चिड़िया मुँह अँधेरे
बोलती है बहुत मीठी आवाज़ में
न जाने क्या
न जाने किससे
और बरसता है पानी
आधी नींद में खाट-बिस्तर समेटकर
घरों के भीतर भागते हैं लोग
कुछ झुँझलाए, कुछ प्रसन्न
घटाटोप अंधकार में चमकती है बिजली
मूसलधार बरसता है पानी
सजल हो जाती हैं खेत
तृप्त हो जाती हैं पुरखों की आत्माएँ
टूटने से बच जाता है मन का मेरुदंड
कहती है मंगतिन
इसी चिड़िया का आवाज़ से
आते हैं मेघ
सुदूर समुद्रों से उठकर
ओ चिड़िया
तुम बोले बारम्बार गाँव में
घर में, घाट में, वन में
पत्थर हो चुके आदमी के मन में ।