{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<Poem>भूखे-प्यासे<br />धूल-मिट्टी में सने<br />हम फुटपाथी बच्चे<br />हुजूर, माई-बाप, सरकार<br />हाथ जोड़ते हैं आपसे<br />दस-पॉंच पैसे के लिए<br />हों तो दे दीजिए<br />न हों तो एक प्यार भरी नजर<br /><br />हम मॉं माँ की आंख आँख के सूखे हुए आंसू<br />आँसूहम पिता के सपनों के उड़े हुए रंग<br />हम बहन की राखी के टूटे हुए धागे<br /><br />कई महीने बीत गये<br />गएट्रेन में लटककर यहॉं आये<br />यहाँ आएबिछुड़े अपने गॉंव गाँव से<br /><br />लेकिन आज भी<br />जब सड़क के कंधे से टिककर<br />भूखे-प्यासे सो जाते हैं हम<br />घुटनों को पेट में मोड़े<br /><br />तब हजारों हज़ारों मील दूर से<br />हमें देखती है<br />गॉंव गाँव की आंख.<br />आँख।<br /poem>