भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अन्न-1 / एकांत श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: अन्‍न<br /> धरती की ऊष्‍मा में पकते हैं<br /> और कटने से बहुत पहले<br /> पहुं…)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
अन्‍न<br />
+
{{KKGlobal}}
धरती की ऊष्‍मा में पकते हैं<br />
+
{{KKRachna
और कटने से बहुत पहले<br />
+
|रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव
पहुंच जाते हैं चुपके से<br />
+
|संग्रह=
किसान की नींद में<br />
+
}}
कि देखो हम आ गये<br />
+
{{KKCatKavita‎}}
तुम्‍हारी तिथि और स्‍वागत की<br />
+
<Poem>
तैयारियों को गलत साबित करते <br />
+
अन्‍न
<br />
+
धरती की ऊष्‍मा में पकते हैं
अन्‍न<br />
+
और कटने से बहुत पहले
अपने सपनों में<br />
+
पहुंच जाते हैं चुपके से
कोई जगह नहीं देते<br />
+
किसान की नींद में
गोदामों और मंडियों को<br />
+
कि देखो हम आ गए
<br />
+
तुम्‍हारी तिथि और स्‍वागत की
अन्‍न धुलेंगे<br />
+
तैयारियों को गलत साबित करते  
किसान की बिटिया के हाथों<br />
+
 
पकेंगे बटुली के खौलते जल में<br />
+
अन्‍न
और एक भूखे गॉंव की खुशी में<br />
+
अपने सपनों में
बदल जायेंगे<br />
+
कोई जगह नहीं देते
<br />
+
गोदामों और मंडियों को
अन्‍न<br />
+
 
पक्षियों की चोंच में बैठकर<br />
+
अन्‍न धुलेंगे
करेंगे अपनी याञा<br />
+
किसान की बिटिया के हाथों
<br />
+
पकेंगे बटुली के खौलते जल में
माढ़ बनकर<br />
+
और एक भूखे गॉंव की खुशी में
गाय का कंठ करेंगे तर<br />
+
बदल जाएँगे
और अगली सुबह<br />
+
 
उसके थन में<br />
+
अन्‍न
दूध बनकर मुस्‍कुरायेंगे<br />
+
पक्षियों की चोंच में बैठकर
<br />
+
करेंगे अपनी यात्रा
अन्‍न<br />
+
 
हमेशा-हमेशा रहेंगे<br />
+
माढ़ बनकर
प्रलय से पहले<br />
+
गाय का कंठ करेंगे तर
प्रलय के बाद<br />
+
और अगली सुबह
<br />
+
उसके थन में
हमेशा-हमेशा<br />
+
दूध बनकर मुस्‍कुराएँगे
अपने दूधियापन से<br />
+
 
जगर-मगर करते गॉंव का मन.<br />
+
अन्‍न
<br />
+
हमेशा-हमेशा रहेंगे
 +
प्रलय से पहले
 +
प्रलय के बाद
 +
 
 +
हमेशा-हमेशा
 +
अपने दूधियापन से
 +
जगर-मगर करते गाँव का मन।

19:11, 28 अप्रैल 2010 का अवतरण

अन्‍न
धरती की ऊष्‍मा में पकते हैं
और कटने से बहुत पहले
पहुंच जाते हैं चुपके से
किसान की नींद में
कि देखो हम आ गए
तुम्‍हारी तिथि और स्‍वागत की
तैयारियों को गलत साबित करते

अन्‍न
अपने सपनों में
कोई जगह नहीं देते
गोदामों और मंडियों को

अन्‍न धुलेंगे
किसान की बिटिया के हाथों
पकेंगे बटुली के खौलते जल में
और एक भूखे गॉंव की खुशी में
बदल जाएँगे

अन्‍न
पक्षियों की चोंच में बैठकर
करेंगे अपनी यात्रा

माढ़ बनकर
गाय का कंठ करेंगे तर
और अगली सुबह
उसके थन में
दूध बनकर मुस्‍कुराएँगे

अन्‍न
हमेशा-हमेशा रहेंगे
प्रलय से पहले
प्रलय के बाद

हमेशा-हमेशा
अपने दूधियापन से
जगर-मगर करते गाँव का मन।