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11:45, 29 अप्रैल 2010 के समय का अवतरण
वृक्षों की फुनगियों पर
टॅंगी है
एक झीनी-सी भोर
चिडियों के झीने संगीत में डूबी हुई
नींद से जाग रहे हैं घर
और सिक्कों की तरह
खनक रहे हैं
वे आ रहे हैं
बीडियॉं सुलगाते
पगडंडियॉं नापते
बैलों की टुनटुनाती घंटियों के साथ
गहरी सॉंस खींचकर
मन-प्राण में भरते
सोंधी धान-गंध
धूप में
चमक रहे हैं
उनके हॅंसिये
हिल रहे हैं
आंवले और जामुन के पेड़
उनके सपनों में
चुपके से अपनी नीलिमा
घोर रही है नदी
भार से झुक रही हैं बालियॉं
और सुनहरे रंग में
डूब रहे हैं खेत
वे जीतेंगे
धरती की यह विपुल सम्पदा
और अपनी बैलगाडियों में लादकर
वापस लौट जायेंगे.