भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"स्त्री / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<poem> | <poem> | ||
यदि स्वर्ग कहीं है पृथ्वी पर, तो वह नारी के उर के भीतर, | यदि स्वर्ग कहीं है पृथ्वी पर, तो वह नारी के उर के भीतर, | ||
− | दल पर दल खोल | + | ::दल पर दल खोल हृदय के अस्तर |
− | जब बिठलाती प्रसन्न होकर | + | ::जब बिठलाती प्रसन्न होकर |
− | वह अमर प्रणय के शतदल पर ! | + | ::वह अमर प्रणय के शतदल पर! |
− | मादकता जग में कहीं अगर, वह नारी अधरों में सुखकर | + | मादकता जग में कहीं अगर, वह नारी अधरों में सुखकर, |
− | क्षण में प्राणों की पीड़ा हर | + | ::क्षण में प्राणों की पीड़ा हर, |
− | + | ::नव जीवन का दे सकती वर | |
− | वह अधरों पर धर | + | ::वह अधरों पर धर मदिराधर। |
यदि कहीं नरक है इस भू पर, तो वह भी नारी के अन्दर, | यदि कहीं नरक है इस भू पर, तो वह भी नारी के अन्दर, | ||
− | वासनावर्त में | + | ::वासनावर्त में डाल प्रखर |
− | वह अंध गर्त में चिर दुस्तर | + | ::वह अंध गर्त में चिर दुस्तर |
− | नर को | + | ::नर को ढकेल सकती सत्वर! |
+ | |||
+ | रचनाकाल: जनवरी’ ४० | ||
</poem> | </poem> |
17:24, 30 अप्रैल 2010 का अवतरण
यदि स्वर्ग कहीं है पृथ्वी पर, तो वह नारी के उर के भीतर,
दल पर दल खोल हृदय के अस्तर
जब बिठलाती प्रसन्न होकर
वह अमर प्रणय के शतदल पर!
मादकता जग में कहीं अगर, वह नारी अधरों में सुखकर,
क्षण में प्राणों की पीड़ा हर,
नव जीवन का दे सकती वर
वह अधरों पर धर मदिराधर।
यदि कहीं नरक है इस भू पर, तो वह भी नारी के अन्दर,
वासनावर्त में डाल प्रखर
वह अंध गर्त में चिर दुस्तर
नर को ढकेल सकती सत्वर!
रचनाकाल: जनवरी’ ४०