"कविता की ज़रूरत-1 / एकांत श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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सबसे पहले | सबसे पहले | ||
सारस के पंखों-सा | सारस के पंखों-सा | ||
− | दूधिया कोरा | + | दूधिया कोरा काग़ज़ दो |
− | फिर एक | + | फिर एक क़लम |
जिसकी स्याही में घुला हो | जिसकी स्याही में घुला हो | ||
− | + | असँख्य काली रातों का अँधकार | |
थोड़ी-सी आग गोरसी की | थोड़ी-सी आग गोरसी की | ||
− | थोड़ा-सा | + | थोड़ा-सा धुआँ |
− | थोड़ा-सा जल | + | थोड़ा-सा जल आँखों का |
जो सपनों की जड़ों में भी बचा हो मुझे दो | जो सपनों की जड़ों में भी बचा हो मुझे दो | ||
कविता लिखने के लिए | कविता लिखने के लिए | ||
− | + | हज़ारों झुके सिरों के बीच | |
एक उठा हाथ | एक उठा हाथ | ||
− | + | हज़ारों रूंधे कंठों के बीच | |
− | एक उठती | + | एक उठती चीख़ |
− | + | हज़ारों रूके पाँवों के बीच | |
− | एक आगे बढ़ता | + | एक आगे बढ़ता पाँव |
− | एक स्ञी की | + | एक स्ञी की हँसी |
− | एक बच्ची की | + | एक बच्ची की ज़िद |
एक दोस्त की धौल | एक दोस्त की धौल | ||
और लहसुन की महक से भरा | और लहसुन की महक से भरा | ||
पंक्ति 33: | पंक्ति 33: | ||
कविता लिखने के लिए | कविता लिखने के लिए | ||
− | एक | + | एक काँस का फूल |
− | जो | + | जो गाँव के माथ पर |
सजा हो | सजा हो | ||
− | एक चिडिया की | + | एक चिडिया की आवाज़ |
− | जो | + | जो कँवार-कार्तिक में |
− | + | सुनाई देती है | |
एक किसान का मन | एक किसान का मन | ||
जो लुवाई के समय प्रसन्न हो | जो लुवाई के समय प्रसन्न हो | ||
− | मुझे वसन्त की | + | मुझे वसन्त की ख़ुशबू से भरी |
पूरी पृथ्वी दो | पूरी पृथ्वी दो | ||
− | कविता लिखने के | + | कविता लिखने के लिए। |
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19:26, 1 मई 2010 के समय का अवतरण
सबसे पहले
सारस के पंखों-सा
दूधिया कोरा काग़ज़ दो
फिर एक क़लम
जिसकी स्याही में घुला हो
असँख्य काली रातों का अँधकार
थोड़ी-सी आग गोरसी की
थोड़ा-सा धुआँ
थोड़ा-सा जल आँखों का
जो सपनों की जड़ों में भी बचा हो मुझे दो
कविता लिखने के लिए
हज़ारों झुके सिरों के बीच
एक उठा हाथ
हज़ारों रूंधे कंठों के बीच
एक उठती चीख़
हज़ारों रूके पाँवों के बीच
एक आगे बढ़ता पाँव
एक स्ञी की हँसी
एक बच्ची की ज़िद
एक दोस्त की धौल
और लहसुन की महक से भरा
एक घर मुझे दो
कविता लिखने के लिए
एक काँस का फूल
जो गाँव के माथ पर
सजा हो
एक चिडिया की आवाज़
जो कँवार-कार्तिक में
सुनाई देती है
एक किसान का मन
जो लुवाई के समय प्रसन्न हो
मुझे वसन्त की ख़ुशबू से भरी
पूरी पृथ्वी दो
कविता लिखने के लिए।