भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शब्द-2 / एकांत श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एकांत श्रीवास्तव |संग्रह=अन्न हैं मेरे शब्द / ए…)
 
 
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
 
और वह फेंके
 
और वह फेंके
  
एक चिडिया का कंठ
+
एक चिड़िया का कंठ
इंतजार में है
+
इंतज़ार में है
 
कि शब्‍द पकें
 
कि शब्‍द पकें
और वह गाये
+
और वह गाए
  
 
और शब्‍द पक रहे हैं
 
और शब्‍द पक रहे हैं
पंक्ति 27: पंक्ति 27:
 
बेमौसम
 
बेमौसम
  
इस वक्‍त
+
इस वक़्त
 
जब एक खरगोश भी
 
जब एक खरगोश भी
 
अपने कान
 
अपने कान
पंक्ति 33: पंक्ति 33:
 
एक चिडिया भी गा नहीं सकती
 
एक चिडिया भी गा नहीं सकती
  
कितनी खतरनाक बात है
+
कितनी ख़तरनाक बात है
 
कि शब्‍द पक रहे हैं
 
कि शब्‍द पक रहे हैं
  
पंक्ति 39: पंक्ति 39:
 
गिर सकते हैं
 
गिर सकते हैं
 
कभी भी
 
कभी भी
वसंत और चिडियों की नींद में.
+
वसंत और चिडियों की नींद में।
 +
</poem>

19:43, 1 मई 2010 के समय का अवतरण

ये शब्‍द हैं
जो पक रहे हैं

एक बच्‍चा अपनी मुट्ठी में
भींच रहा है पत्‍थर
कि शब्‍द पकें
और वह फेंके

एक चिड़िया का कंठ
इंतज़ार में है
कि शब्‍द पकें
और वह गाए

और शब्‍द पक रहे हैं
पूरे इत्‍मीनान से

चौंक रहा है जंगल
हड़बड़ा रहे हैं पहाड़
कि शब्‍द पक रहे हैं
बेमौसम

इस वक़्त
जब एक खरगोश भी
अपने कान
खड़े नहीं कर सकता
एक चिडिया भी गा नहीं सकती

कितनी ख़तरनाक बात है
कि शब्‍द पक रहे हैं

जो
गिर सकते हैं
कभी भी
वसंत और चिडियों की नींद में।