भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रेम / परमेन्द्र सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परमेन्द्र सिंह |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> एक शरारती जंग…)
 
(कोई अंतर नहीं)

10:13, 2 मई 2010 के समय का अवतरण

एक शरारती
जंगली खरगोश
अपनी झलक-भर दिखाकर
छिप जाता
खो जाता - अन्तर्बाह्य के विस्तारों में
एक चाह कि छू लें उसे।

बना लेना चाहते हैं
उसकी नर्म खाल के गर्म दस्ताने।

बरसों
वह थकाता
पर अन्ततः दबोच लिया जाता
सहलाया जाता - दोहराए जाते स्पर्श
बिना जाने, बिना देखे
उसका काला पड़ता हुआ रंग।