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"जगह-जगह दरवाज़े हमारे / नवीन सागर" के अवतरणों में अंतर

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दीवारें सिर्फ छप्‍पर साधने के लिए थीं
 
दीवारें सिर्फ छप्‍पर साधने के लिए थीं
जगह-जगह दरवाजे हमारे
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जगह-जगह दरवाज़े हमारे
 
खुले हुए थे
 
खुले हुए थे
खिड़कियां थीं
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खिड़कियाँ थीं
बारजे थे आंगने थे और छतें
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बारजे थे आँगने थे और छतें
सड़कों पर हम अक्‍सर मिल जाते थे.
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सड़कों पर हम अक्‍सर मिल जाते थे।
  
 
सुनने और कहने के लिए जो शब्‍द थे
 
सुनने और कहने के लिए जो शब्‍द थे
उनमें अजन्‍में शब्‍दों की बड़ी गूंज थी
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उनमें अजन्‍में शब्‍दों की बड़ी गूँज थी
दूर-दूर की आवाजें
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दूर-दूर की आवाज़ें
 
हमारे पास प्रतिध्‍वनि की तरह आती थीं
 
हमारे पास प्रतिध्‍वनि की तरह आती थीं
हम खोए हुए अक्‍सर अपने आर-पार आते-जाते थे.
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हम खोए हुए अक्‍सर अपने आर-पार आते-जाते थे।
  
 
हमारी मृत्‍यु होती थी
 
हमारी मृत्‍यु होती थी
 
जन्‍मों से भरे इस संसार में हम
 
जन्‍मों से भरे इस संसार में हम
बार-बार जन्‍म लेते थे.
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बार-बार जन्‍म लेते थे।
 
हम खुले में लेट जाते थे तारे देखते थे
 
हम खुले में लेट जाते थे तारे देखते थे
धूल पर उंगलियों से लकीरें खींचते थे
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धूल पर उँगलियों से लकीरें खींचते थे
नाम लिखते थे.
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नाम लिखते थे।
  
धरती जहॉं से पेड़ बनकर आना चाहती थी
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धरती जहाँ से पेड़ बनकर आना चाहती थी
वहां से हट जाते थे
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वहाँ से हट जाते थे
और चिडियों के भीतर से गाते थे.
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और चिड़ियों के भीतर से गाते थे।
  
 
अब एक पुरानी बस्‍ती
 
अब एक पुरानी बस्‍ती
खस्‍ताहाल मकान गलियों के मुहाने
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ख़स्‍ताहाल मकान गलियों के मुहाने
भारी सदमे के झटपुटे में ढह रहे हैं.
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भारी सदमे के झटपुटे में ढह रहे हैं।
  
 
हम एक गली में हैं लावारिस
 
हम एक गली में हैं लावारिस
चील कौवे धसकती मुंडेरों पर बैठे हैं
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चील कौवे धसकती मुँडेरों पर बैठे हैं
गर्दनें टेढ़ी किए.
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गर्दनें टेढ़ी किए।
  
 
एक टूटी हुई खिड़की
 
एक टूटी हुई खिड़की
 
हवा में झूल रही है
 
हवा में झूल रही है
तारों की अवाक दूरियॉं बुझने-बुझने को हैं.
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तारों की अवाक दूरियॉं बुझने-बुझने को हैं।
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20:45, 2 मई 2010 के समय का अवतरण

दीवारें सिर्फ छप्‍पर साधने के लिए थीं
जगह-जगह दरवाज़े हमारे
खुले हुए थे
खिड़कियाँ थीं
बारजे थे आँगने थे और छतें
सड़कों पर हम अक्‍सर मिल जाते थे।

सुनने और कहने के लिए जो शब्‍द थे
उनमें अजन्‍में शब्‍दों की बड़ी गूँज थी
दूर-दूर की आवाज़ें
हमारे पास प्रतिध्‍वनि की तरह आती थीं
हम खोए हुए अक्‍सर अपने आर-पार आते-जाते थे।

हमारी मृत्‍यु होती थी
जन्‍मों से भरे इस संसार में हम
बार-बार जन्‍म लेते थे।
हम खुले में लेट जाते थे तारे देखते थे
धूल पर उँगलियों से लकीरें खींचते थे
नाम लिखते थे।

धरती जहाँ से पेड़ बनकर आना चाहती थी
वहाँ से हट जाते थे
और चिड़ियों के भीतर से गाते थे।

अब एक पुरानी बस्‍ती
ख़स्‍ताहाल मकान गलियों के मुहाने
भारी सदमे के झटपुटे में ढह रहे हैं।

हम एक गली में हैं लावारिस
चील कौवे धसकती मुँडेरों पर बैठे हैं
गर्दनें टेढ़ी किए।

एक टूटी हुई खिड़की
हवा में झूल रही है
तारों की अवाक दूरियॉं बुझने-बुझने को हैं।