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<Poem>
आधी रात के वक्त वक़्त अपने शहर का रास्ता
पराए शहर में भूला
परिचित सिर्फ सिर्फ़ भिखारी
आसमान से गिरे हुए चीथड़ों से
छूटा हुआ रोशन
परिचित सिर्फ परछाइयॉंसिर्फ़ परछाइयाँ:चीजों चीज़ों के अंधेरे अँधेरे का रंगपरिचित सिर्फ दरवाजे सिर्फ़ दरवाज़े बंद और मजबूत.मज़बूत।
इनमें से किसी से पूछता रास्ता
कि अकस्मात एक चीखचीख़बहुत परिचित जहॉं जहाँ जिस तरफ तरफ़ सेउस तरफ तरफ़ को दिखा रास्ता
कि तभी
जो रास्ते पर था
ट्रक ड्राइवर गाता हुआ चला रहा था
मैं ऊंघता ऊँघता हुआ अपने शहर पहुंचा.पहुँचा।</poem>