भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"माँग रहा लेकर कटोरा / जीवन शुक्ल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= जीवन शुक्ल}} {{KKCatNavgeet}} <poem> माँग रहा लेकर कटोरा भटक गई…)
 
 
पंक्ति 17: पंक्ति 17:
 
दूषित समाज का गहन लगा छोरा।
 
दूषित समाज का गहन लगा छोरा।
  
 +
असमय में कबीर के गीतों का साथ
 +
पोंछ रहा कमलों से शबनम का माथ
 +
माँग रहा कण कण में दुर्दिन का ईश
 +
दाता की खैर कुशल सस्ती आशीष
  
 
+
माटी की गोद भली
 +
संयम का बोरा
 +
माँग रहा लेकर कटोरा
 +
नियति के नवासे का नया नया छोरा ।।
  
 
</poem>
 
</poem>

10:05, 4 मई 2010 के समय का अवतरण

माँग रहा लेकर कटोरा
भटक गई किस्मत का सावधान छोरा।

ढकी मुँदी आँखों के कजरारे द्वार
इकतारी काया के कर का प्रस्तार
टूट नहीं पाता है अम्बर का धीर
धरती पी जाती है होंठों में पीर

उड़ती कनकैया का
धारदार डोरा
माँग रहा लेकर कटोरा
दूषित समाज का गहन लगा छोरा।

असमय में कबीर के गीतों का साथ
पोंछ रहा कमलों से शबनम का माथ
माँग रहा कण कण में दुर्दिन का ईश
दाता की खैर कुशल सस्ती आशीष

माटी की गोद भली
संयम का बोरा
माँग रहा लेकर कटोरा
नियति के नवासे का नया नया छोरा ।।