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"भले ही मुल्क के / कमलेश भट्ट 'कमल'" के अवतरणों में अंतर

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फिसलते ही फिसलते आ गए नाज़ुक मुहाने तक
 
फिसलते ही फिसलते आ गए नाज़ुक मुहाने तक
जरूरी है कि अब आगे से हमसे गल्तियाँ कम हों।
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ज़रूरी है कि अब आगे से हमसे गल्तियाँ कम हों।
  
यही जो बेटियाँ हैं ये ही आखिर कल की माँए हैं
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यही जो बेटियाँ हैं ये ही आख़िर कल की माँए हैं
 
मिलें मुश्किल से कल माँए न इतनी बेटियाँ कम हों।
 
मिलें मुश्किल से कल माँए न इतनी बेटियाँ कम हों।
  
दिलों को भी तो अपना काम करने का मिले मौका
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दिलों को भी तो अपना काम करने का मिले मौक़ा
 
दिमागों ने जो पैदा की है शायद दूरियाँ कम हों।
 
दिमागों ने जो पैदा की है शायद दूरियाँ कम हों।
  

22:54, 4 मई 2010 का अवतरण

भले ही मुल्क के हालात में तब्दीलियाँ कम हों
किसी सूरत गरीबों की मगर अब सिसकियाँ कम हों।

तरक्की ठीक है इसका ये मतलब तो नहीं लेकिन
धुआँ हो, चिमनियाँ हों, फूल कम हों, तितलियाँ कम हों।

फिसलते ही फिसलते आ गए नाज़ुक मुहाने तक
ज़रूरी है कि अब आगे से हमसे गल्तियाँ कम हों।

यही जो बेटियाँ हैं ये ही आख़िर कल की माँए हैं
मिलें मुश्किल से कल माँए न इतनी बेटियाँ कम हों।

दिलों को भी तो अपना काम करने का मिले मौक़ा
दिमागों ने जो पैदा की है शायद दूरियाँ कम हों।

अगर सचमुच तू दाता है कभी ऐसा भी कर ईश्वर
तेरी खैरात ज्यादा हो हमारी झोलियाँ कम हों।