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"सुनो अदीब/ अशोक तिवारी" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=अशोक तिवारी
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'''गुजरात में बेकरी में लोगों को जिंदा जलाए जाने पर'''
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अदीब !
 
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सुनना चाहोगे क्या तुम
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मांग रही है मेरी रूह जवाब
 
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उसी दिन से अदीब
 
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जब मेरे जिस्म के टुकड़े-टुकड़े करके
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जब मेरे ज़िस्म के टुकड़े-टुकड़े करके
 
झोंक दिया गया था बेकरी में
 
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में कैसे करूं खुलासा
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वहशियों का वहशीपन
 
वहशियों का वहशीपन
उनकी नाफर्मानियों और कुकृत्यों का
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त्रिशूल घोंपा
 
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अब्बू की अंतड़ियों में
 
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जान  की फजीहत बन गया किस तरह
 
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जब उसे कसकर बांधा गया
 
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उनके मुंह पर
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काट दिया स्तनों को
 
काट दिया स्तनों को
 
तब दूध नहीं खून की नदियाँ बहीं थीं अदीब
 
तब दूध नहीं खून की नदियाँ बहीं थीं अदीब
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मेरे जिस्म को हैवानियत का शिकार बनाया
 
मेरे जिस्म को हैवानियत का शिकार बनाया
 
और भोगलिप्सा के बाद ....
 
और भोगलिप्सा के बाद ....
मैं आखिरी चीज़ थी जिसे
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मैं आख़िरी चीज़ थी जिसे
 
भूना गया बेकरी में
 
भूना गया बेकरी में
  
 
देख सकते हो अदीब
 
देख सकते हो अदीब
आज भी वहां जाकर
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आज भी वहाँ जाकर
जहां बिखरी पड़ी हैं अम्मी कि टूटी चूड़ियाँ
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जहाँ बिखरी पड़ी हैं अम्मी कि टूटी चूड़ियाँ
अब्बू के गले का ताबीज
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अब्बू के गले का ताबीज़
 
मेरी उन किताबों का ढेर
 
मेरी उन किताबों का ढेर
 
जिनमें मैंने पढ़ी थीं
 
जिनमें मैंने पढ़ी थीं
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मुझे सुनो
 
मुझे सुनो
 
मुझे भी सुनो...!!!  
 
मुझे भी सुनो...!!!  
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16/08/2002
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(गुजरात नरसंहार में बेकरी में लोगों को जिंदा जलाए जाने पर)
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रचनाकाल : 16.अगस्त 2002
 
</poem>
 
</poem>

23:02, 4 मई 2010 के समय का अवतरण

गुजरात में बेकरी में लोगों को जिंदा जलाए जाने पर


अदीब !
सुनना चाहोगे क्या तुम
वक़्त होगा
एक रूह से गुफ्तगू के लिए
तुम्हारे पास
मांग रही है मेरी रूह जवाब
उसी दिन से अदीब
जब मेरे ज़िस्म के टुकड़े-टुकड़े करके
झोंक दिया गया था बेकरी में

में कैसे करूँ खुलासा
वहशियों का वहशीपन
उनकी नाफ़र्मानियों और कुकृत्यों का
कि किस तरह दरिंदों ने
त्रिशूल घोंपा
अब्बू की अंतड़ियों में
अम्मी का बुरका
जान की फजीहत बन गया किस तरह
जब उसे कसकर बांधा गया
उनके मुँह पर
काट दिया स्तनों को
तब दूध नहीं खून की नदियाँ बहीं थीं अदीब

तड़पती अम्मी की आँखों के सामने
मुझे किस तरह नंगा किया गया अदीब
क्या तुम जानना चाहोगे
सुनना चाहोगे मुझे कि
मेरी ओर बढ़ने वाले
हाथों ने किस तरह
मैदा में सने मेरे हाथों को बांधकर
मेरे जिस्म को हैवानियत का शिकार बनाया
और भोगलिप्सा के बाद ....
मैं आख़िरी चीज़ थी जिसे
भूना गया बेकरी में

देख सकते हो अदीब
आज भी वहाँ जाकर
जहाँ बिखरी पड़ी हैं अम्मी कि टूटी चूड़ियाँ
अब्बू के गले का ताबीज़
मेरी उन किताबों का ढेर
जिनमें मैंने पढ़ी थीं
सभी इंसानों के बराबर होने कि बातें

गुजरात,
मेरी ज़मीन थी अदीब
हिंदुस्तान
मेरी रूह
मेरी ही रूह को
मुझसे जुदा किया गया
मेरे वुजूद को
ख़त्म किया गया
मेरी ज़मीन से
मेरे वतन से
क्यों, अदीब क्यों
..........??
अपने कानों को बंद मत करो
अदीब, हथेली हटाओ
सुनो अदीब, सुनो
मुझे सुनो
मुझे भी सुनो...!!!


रचनाकाल : 16.अगस्त 2002