भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"शब्द नहीं देते साथ / नवीन सागर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन सागर |संग्रह=नींद से लम्‍बी रात / नवीन सागर…)
 
 
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
 
उसने विस्‍मय से मुझे देखा
 
उसने विस्‍मय से मुझे देखा
 
बहुत विस्‍मय उसका सम्‍मोहित करता है
 
बहुत विस्‍मय उसका सम्‍मोहित करता है
उसकी आवाज में शब्‍द नहीं हैं
+
उसकी आवाज़ में शब्‍द नहीं हैं
वह आवाज धरती जितनी पुरानी लगती है
+
वह आवाज़ धरती जितनी पुरानी लगती है
  
 
उसने अपनी मुट्ठी में मेरे बाल भरे
 
उसने अपनी मुट्ठी में मेरे बाल भरे
उन्‍हें खूब खींचा
+
उन्‍हें ख़ूब खींचा
 
कहीं भी नाखून मारे
 
कहीं भी नाखून मारे
हाथ पांव फेंके किलकारियां भरीं
+
हाथ-पाँव फेंके किलकारियाँ भरीं
 
और रोया
 
और रोया
उसके रोने में उकसी मां की आहट है.
+
उसके रोने में उकसी माँ की आहट है।
  
उसने अपनी मां की गोद में पहुंचकर
+
उसने अपनी माँ की गोद में पहुँचकर
 
मुझे देखा
 
मुझे देखा
 
वह देखना वह क्‍या था
 
वह देखना वह क्‍या था
 
कि शब्‍द नहीं देते साथ
 
कि शब्‍द नहीं देते साथ
 +
</poem>

21:13, 5 मई 2010 के समय का अवतरण

छोटे से बच्‍चे को खिलाया
इतने छोटे बच्‍चे को
जो ऐसे देखता है मानो कहीं और देखता हो
जो भूला हुआ-सा मुस्‍कराता है
जैसे कुछ याद आया हो!

उसने विस्‍मय से मुझे देखा
बहुत विस्‍मय उसका सम्‍मोहित करता है
उसकी आवाज़ में शब्‍द नहीं हैं
वह आवाज़ धरती जितनी पुरानी लगती है

उसने अपनी मुट्ठी में मेरे बाल भरे
उन्‍हें ख़ूब खींचा
कहीं भी नाखून मारे
हाथ-पाँव फेंके किलकारियाँ भरीं
और रोया
उसके रोने में उकसी माँ की आहट है।

उसने अपनी माँ की गोद में पहुँचकर
मुझे देखा
वह देखना वह क्‍या था
कि शब्‍द नहीं देते साथ