भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"भागते हैं / नवीन सागर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन सागर |संग्रह=नींद से लम्बी रात / नवीन सागर }}…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:45, 6 मई 2010 के समय का अवतरण
हमसे कुचल कर कोई
हिलते-भागते दृश्य में पीछे
छूट जाता है
हम जान छोड़कर भागते हैं
जो लोग भागने की कठोरता को
देख रहे हैं
जो अपमानित हैं
जिन्हें गुस्सा आता है
और जिन्हें हम भाषा की किसी दरार में
धकेल सकते हैं
बिना तर्क इस तरह अचानक
चले जाते हैं
कंधों पर बंदूकें टांगे
और मारे जाते हैं
खबर पढ़ी जब
भय हुआ कि वे मारे जा रहे हैं
वे मारेंगे
कहो यह बच्चा जो अभी सोया है
मां के पास
वहां रहे जहां हमें रहना नहीं पड़ा
और हम बचे रहे
हमने समझा हम बच गए हैं
भूल गए कि अगर एक नहीं बचता
तो कोई बच नहीं सकता
