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"सूर्यपाखी का नृत्य / अनातोली परपरा" के अवतरणों में अंतर
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सूर्यपाखी ने खोले हैं जब से, अपने पंख सुनहरे | सूर्यपाखी ने खोले हैं जब से, अपने पंख सुनहरे | ||
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धरती पर फैले रंग हज़ारों, कुछ हल्के, कुछ गहरे | धरती पर फैले रंग हज़ारों, कुछ हल्के, कुछ गहरे | ||
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दिन बीत गए जाड़ों के निष्प्रभ, फैली है लालिमा | दिन बीत गए जाड़ों के निष्प्रभ, फैली है लालिमा | ||
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प्रसवा कृष्णबेरी लगी फूलने, कुसुमों पर छाई कालिमा | प्रसवा कृष्णबेरी लगी फूलने, कुसुमों पर छाई कालिमा | ||
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वहाँ बाड़ के पीछे से झाँकें, जगमग फूलों के झुमके | वहाँ बाड़ के पीछे से झाँकें, जगमग फूलों के झुमके | ||
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सेब की डालें नृत्य कर रहीं, लगा रही हैं वे ठुमके | सेब की डालें नृत्य कर रहीं, लगा रही हैं वे ठुमके | ||
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जाड़ों में धूसर लगे गगन जो, हो गया एकदम नीला | जाड़ों में धूसर लगे गगन जो, हो गया एकदम नीला | ||
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रवि रूप झलकाए झिलमिल, स्वर्ण फेंक रहा पीला | रवि रूप झलकाए झिलमिल, स्वर्ण फेंक रहा पीला | ||
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मन मेरा लहक रहा, याराँ, देख-देख यह झलकी | मन मेरा लहक रहा, याराँ, देख-देख यह झलकी | ||
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मौसम बुआई का आया है, कौन याद करे अब कल की | मौसम बुआई का आया है, कौन याद करे अब कल की | ||
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गुज़र गया महीना अप्रैल का, गुज़र रहा अब मई | गुज़र गया महीना अप्रैल का, गुज़र रहा अब मई | ||
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मथे ज़ोर से युवा हृदयों को, चटख प्रेम की रई | मथे ज़ोर से युवा हृदयों को, चटख प्रेम की रई | ||
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विदा-विदा तुझे, ओ उदासी, अब समय दूसरा आया | विदा-विदा तुझे, ओ उदासी, अब समय दूसरा आया | ||
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जाड़ा हिमश्वेत बीत गया अब, फैली रंगों की छाया | जाड़ा हिमश्वेत बीत गया अब, फैली रंगों की छाया | ||
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21:32, 7 मई 2010 के समय का अवतरण
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सूर्यपाखी ने खोले हैं जब से, अपने पंख सुनहरे
धरती पर फैले रंग हज़ारों, कुछ हल्के, कुछ गहरे
दिन बीत गए जाड़ों के निष्प्रभ, फैली है लालिमा
प्रसवा कृष्णबेरी लगी फूलने, कुसुमों पर छाई कालिमा
वहाँ बाड़ के पीछे से झाँकें, जगमग फूलों के झुमके
सेब की डालें नृत्य कर रहीं, लगा रही हैं वे ठुमके
जाड़ों में धूसर लगे गगन जो, हो गया एकदम नीला
रवि रूप झलकाए झिलमिल, स्वर्ण फेंक रहा पीला
मन मेरा लहक रहा, याराँ, देख-देख यह झलकी
मौसम बुआई का आया है, कौन याद करे अब कल की
गुज़र गया महीना अप्रैल का, गुज़र रहा अब मई
मथे ज़ोर से युवा हृदयों को, चटख प्रेम की रई
विदा-विदा तुझे, ओ उदासी, अब समय दूसरा आया
जाड़ा हिमश्वेत बीत गया अब, फैली रंगों की छाया