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बदला / अनातोली परपरा

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|संग्रह=माँ की मीठी आवाज़ / अनातोली परपरा
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 <poem>
किसी से भी बदला लेकर
 
अपमान करो न अपना
 
न अपने कामों से
 
न अपनी नज़र से
 
न अपने मन के भीतर तुम बदला लो किसी से
 
यदि क्रोध करोगे, भाई
 
यदि बदला लोगे, सांई
 
तब तुम भी तो होगे बिल्कुल उसी से
 
महसूस करो न अपमान
 
बदला लेने की हद तक
 
तुमने भला किया हमेशा
 
अपने जीवन में सारे
 
अब भूल गए गुण अपना
 
और नीचता से हारे
 
यदि मैं होता, भैय्या, जगह पर तुम्हारी
 
अपमानित महसूस न करता
 
रख कोष दया का भारी
</poem>
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