भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बीच सागर में / अनातोली परपरा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) छो (बीच सागर में / अनातोली पारपरा का नाम बदलकर बीच सागर में / अनातोली परपरा कर दिया गया है) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=माँ की मीठी आवाज़ / अनातोली परपरा | |संग्रह=माँ की मीठी आवाज़ / अनातोली परपरा | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
[[Category:रूसी भाषा]] | [[Category:रूसी भाषा]] | ||
− | + | <poem> | |
इस तन्हाई में फकीरे | इस तन्हाई में फकीरे | ||
− | |||
दिन बीते धीरे-धीरे | दिन बीते धीरे-धीरे | ||
− | |||
:::यहाँ सागर की राहों में | :::यहाँ सागर की राहों में | ||
− | |||
कभी नभ में छाते बादल | कभी नभ में छाते बादल | ||
− | |||
बजते ज्यूँ बजता मादल | बजते ज्यूँ बजता मादल | ||
− | |||
:::मन हर्षित होते घटाओं के | :::मन हर्षित होते घटाओं के | ||
− | |||
सागर का खारा पानी | सागर का खारा पानी | ||
− | |||
धूप से हो जाता धानी | धूप से हो जाता धानी | ||
− | |||
:::रंग लहके पीत छटाओं के | :::रंग लहके पीत छटाओं के | ||
− | |||
जब याद घर की आती | जब याद घर की आती | ||
− | |||
मन को बेहद भरमाती | मन को बेहद भरमाती | ||
− | |||
:::स्वर आकुल होते चाहों के | :::स्वर आकुल होते चाहों के | ||
− | |||
बस श्वेत-सलेटी पाखी | बस श्वेत-सलेटी पाखी | ||
− | |||
जब उड़ दे जाते झाँकी | जब उड़ दे जाते झाँकी | ||
− | |||
:::मलहम लगती कुछ आहों पे | :::मलहम लगती कुछ आहों पे | ||
+ | </poem> |
22:02, 7 मई 2010 के समय का अवतरण
|
इस तन्हाई में फकीरे
दिन बीते धीरे-धीरे
यहाँ सागर की राहों में
कभी नभ में छाते बादल
बजते ज्यूँ बजता मादल
मन हर्षित होते घटाओं के
सागर का खारा पानी
धूप से हो जाता धानी
रंग लहके पीत छटाओं के
जब याद घर की आती
मन को बेहद भरमाती
स्वर आकुल होते चाहों के
बस श्वेत-सलेटी पाखी
जब उड़ दे जाते झाँकी
मलहम लगती कुछ आहों पे