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"बादरु गरजइ बिजुरी / कन्नौजी" के अवतरणों में अंतर
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− | बादरु गरजइ बिजुरी चमकइ | + | बादरु गरजइ बिजुरी चमकइ |
− | बैरिनि ब्यारि चलइ पुरबइया, | + | बैरिनि ब्यारि चलइ पुरबइया, |
− | काहू सौतिन नइँ भरमाये | + | काहू सौतिन नइँ भरमाये |
− | ननदी फेरि तुम्हारे भइया।। | + | ननदी फेरि तुम्हारे भइया।। |
− | दादुर मोर पपीहा बोलइँ | + | दादुर मोर पपीहा बोलइँ |
− | भेदु हमारे जिय को खोलइँ | + | भेदु हमारे जिय को खोलइँ |
− | बरसा नाहिं, हमारे आँसुन | + | बरसा नाहिं, हमारे आँसुन |
− | सइ उफनाने ताल-तलइया। | + | सइ उफनाने ताल-तलइया। |
− | काहू सौतिन...।। | + | काहू सौतिन...।। |
− | सबके छानी-छप्पर द्वारे | + | सबके छानी-छप्पर द्वारे |
− | छाय रहे उनके घरवारे, | + | छाय रहे उनके घरवारे, |
− | बिन साजन को छाजन छावइ | + | बिन साजन को छाजन छावइ |
− | कौन हमारी धरइ मड़इया । | + | कौन हमारी धरइ मड़इया । |
− | काहू सौतिन...।। | + | काहू सौतिन...।। |
− | सावन सूखि | + | सावन सूखि गई सब काया |
− | देखु भक्त कलियुग की माया, | + | देखु भक्त कलियुग की माया, |
− | घर की खीर, खुरखुरी लागइ | + | घर की खीर, खुरखुरी लागइ |
− | बाहर की भावइ गुड़-लइया। | + | बाहर की भावइ गुड़-लइया। |
− | काहू सौतिन...।। | + | काहू सौतिन...।। |
− | देखि-देखि के नैन हमारे | + | देखि-देखि के नैन हमारे |
− | भँवरा आवइँ साँझ–सकारे, | + | भँवरा आवइँ साँझ–सकारे, |
− | लछिमन रेखा खिंची अवधि की | + | लछिमन रेखा खिंची अवधि की |
− | भागि जाइँ सब छुइ-छुइ ढइया । | + | भागि जाइँ सब छुइ-छुइ ढइया । |
− | काहू सौतिन...।। | + | काहू सौतिन...।। |
− | माना तुम नर हउ हम नारी | + | माना तुम नर हउ हम नारी |
− | बजइ न एक हाथ सइ तारी, | + | बजइ न एक हाथ सइ तारी, |
− | चारि दिना के बाद यहाँ सइ | + | चारि दिना के बाद यहाँ सइ |
− | उड़ि जायेगी सोन चिरइया। | + | उड़ि जायेगी सोन चिरइया। |
− | काहू सौतिन...।।< | + | काहू सौतिन...।। |
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10:57, 8 मई 2010 के समय का अवतरण
♦ रचनाकार: ठा॰ गंगाभक्त सिंह भक्त
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बादरु गरजइ बिजुरी चमकइ
बैरिनि ब्यारि चलइ पुरबइया,
काहू सौतिन नइँ भरमाये
ननदी फेरि तुम्हारे भइया।।
दादुर मोर पपीहा बोलइँ
भेदु हमारे जिय को खोलइँ
बरसा नाहिं, हमारे आँसुन
सइ उफनाने ताल-तलइया।
काहू सौतिन...।।
सबके छानी-छप्पर द्वारे
छाय रहे उनके घरवारे,
बिन साजन को छाजन छावइ
कौन हमारी धरइ मड़इया ।
काहू सौतिन...।।
सावन सूखि गई सब काया
देखु भक्त कलियुग की माया,
घर की खीर, खुरखुरी लागइ
बाहर की भावइ गुड़-लइया।
काहू सौतिन...।।
देखि-देखि के नैन हमारे
भँवरा आवइँ साँझ–सकारे,
लछिमन रेखा खिंची अवधि की
भागि जाइँ सब छुइ-छुइ ढइया ।
काहू सौतिन...।।
माना तुम नर हउ हम नारी
बजइ न एक हाथ सइ तारी,
चारि दिना के बाद यहाँ सइ
उड़ि जायेगी सोन चिरइया।
काहू सौतिन...।।