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"खबर मिली है / अशोक तिवारी" के अवतरणों में अंतर

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खबर मिली है ड्योडी पर मां
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खबर मिली है ड्योड़ी पर माँ
 
रोज़ सुबह ताका करती है
 
रोज़ सुबह ताका करती है
 
स्कूल जा रहे बच्चों को
 
स्कूल जा रहे बच्चों को
दफ्तर आते-जाते सबको
+
दफ़्तर आते-जाते सबको
 
याद किया करती है उनमें अपने बच्चे   
 
याद किया करती है उनमें अपने बच्चे   
चले गए जो पेट की खातिर दूर दूर तक  
+
चले गए जो पेट की ख़ातिर दूर-दूर तक  
  
खबर मिली है
+
ख़बर मिली है
मां की ऑंखें दर्द कर रहीं
+
माँ की आँखें दर्द कर रहीं
 
गाढ़ी झिल्ली छाई रेटिना के ऊपर
 
गाढ़ी झिल्ली छाई रेटिना के ऊपर
दिखना उसका खत्म हो रहा धीरे -धीरे  
+
दिखना उसका ख़त्म हो रहा धीरे-धीरे  
  
खबर मिली है  
+
ख़बर मिली है  
मां की टाँगें बोझ  नहीं सह पातीं हैं अब  
+
माँ की टाँगें बोझ  नहीं सह पातीं हैं अब  
 
रह-रहकर दबवाती तलवे  
 
रह-रहकर दबवाती तलवे  
 
चलते-चलते रुक जाती है  
 
चलते-चलते रुक जाती है  
 
जगह-जगह पर  
 
जगह-जगह पर  
 
पर चलती जाती, चलती जाती  
 
पर चलती जाती, चलती जाती  
कहीं पहुँचने.......
+
कहीं पहुँचने....
  
खबर मिली है  
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ख़बर मिली है  
मां अक्सर सोचा करती है  बीती बातें  
+
माँ अक्सर सोचा करती है  बीती बातें  
 
या आने वाले कल की बातें  
 
या आने वाले कल की बातें  
 
कुछ सुख की, कुछ दुःख की बातें  
 
कुछ सुख की, कुछ दुःख की बातें  
रोज़ देर से सोती मां जगती है जल्दी  
+
रोज़ देर से सोती माँ जगती है जल्दी  
 
और जागकर देखा करती उन सपनों को  
 
और जागकर देखा करती उन सपनों को  
 
देख नहीं पाती है जिनको गहरी नींद में  
 
देख नहीं पाती है जिनको गहरी नींद में  
  
खबर मिली है  
+
ख़बर मिली है  
 
सहेज रही है बिखरे अपने सारे सपने  
 
सहेज रही है बिखरे अपने सारे सपने  
खबर मिली है  
+
ख़बर मिली है  
अरमानों को लेकर मां बेचैन नहीं है
+
अरमानों को लेकर माँ बेचैन नहीं है
  
खबर मिली है  
+
ख़बर मिली है  
मां को एक उम्मीद बँधी है  
+
माँ को एक उम्मीद बँधी है  
 
बचपन को जीने की फिर से  
 
बचपन को जीने की फिर से  
खबर मिली है  
+
ख़बर मिली है  
एक बार फिर मां से सुनते ढेरों बच्चे  
+
एक बार फिर माँ से सुनते ढेरों बच्चे  
किस्से कहानी  
+
किस्स- कहानी  
 
हुआ करते हैं  जिसमें  
 
हुआ करते हैं  जिसमें  
 
शेखचिल्ली और कोरिया जैसे पात्र
 
शेखचिल्ली और कोरिया जैसे पात्र
 
करते हैं जो मेहनत दुनियाभर की  
 
करते हैं जो मेहनत दुनियाभर की  
कहे जाते हैं  पर सरेआम बेवकूफ फिर भी  
+
कहे जाते हैं  पर सरेआम बेवकूफ़ फिर भी  
  
खबर मिली है  
+
ख़बर मिली है  
इतने पर भी करती है मां
+
इतने पर भी करती है माँ
 
घर का पूरा काम  
 
घर का पूरा काम  
 
मशगूल रहती है सुबह-शाम  
 
मशगूल रहती है सुबह-शाम  
 
भरते हुए   
 
भरते हुए   
 
शेखचिल्ली और कोरिया जैसों के सत्व  को अपने अंदर  
 
शेखचिल्ली और कोरिया जैसों के सत्व  को अपने अंदर  
बेवकूफ बनने - बनाने के लिए नहीं  
+
बेवकूफ़ बनने-बनाने के लिए नहीं  
 
पाने के लिए अपने हक को  
 
पाने के लिए अपने हक को  
 
मेहनत के बल पर  
 
मेहनत के बल पर  
  
खबर मिली है  
+
ख़बर मिली है  
मां का चेहरा खिला-खिला है  
+
माँ का चेहरा खिला-खिला है  
 
उसे नाज़ है  
 
उसे नाज़ है  
 
अपने उस होने का  
 
अपने उस होने का  
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उस न होने को, जो वो नहीं हो पाई  
 
उस न होने को, जो वो नहीं हो पाई  
  
खबर मिली है  
+
ख़बर मिली है  
मेरी मां अब  
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मेरी माँ अब  
गाँव गढ़ी में सबकी मां है  
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गाँव गढ़ी में सबकी माँ है  
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07:34, 9 मई 2010 के समय का अवतरण

खबर मिली है ड्योड़ी पर माँ
रोज़ सुबह ताका करती है
स्कूल जा रहे बच्चों को
दफ़्तर आते-जाते सबको
याद किया करती है उनमें अपने बच्चे
चले गए जो पेट की ख़ातिर दूर-दूर तक

ख़बर मिली है
माँ की आँखें दर्द कर रहीं
गाढ़ी झिल्ली छाई रेटिना के ऊपर
दिखना उसका ख़त्म हो रहा धीरे-धीरे

ख़बर मिली है
माँ की टाँगें बोझ नहीं सह पातीं हैं अब
रह-रहकर दबवाती तलवे
चलते-चलते रुक जाती है
जगह-जगह पर
पर चलती जाती, चलती जाती
कहीं पहुँचने....

ख़बर मिली है
माँ अक्सर सोचा करती है बीती बातें
या आने वाले कल की बातें
कुछ सुख की, कुछ दुःख की बातें
रोज़ देर से सोती माँ जगती है जल्दी
और जागकर देखा करती उन सपनों को
देख नहीं पाती है जिनको गहरी नींद में

ख़बर मिली है
सहेज रही है बिखरे अपने सारे सपने
ख़बर मिली है
अरमानों को लेकर माँ बेचैन नहीं है

ख़बर मिली है
माँ को एक उम्मीद बँधी है
बचपन को जीने की फिर से
ख़बर मिली है
एक बार फिर माँ से सुनते ढेरों बच्चे
किस्स- कहानी
हुआ करते हैं जिसमें
शेखचिल्ली और कोरिया जैसे पात्र
करते हैं जो मेहनत दुनियाभर की
कहे जाते हैं पर सरेआम बेवकूफ़ फिर भी

ख़बर मिली है
इतने पर भी करती है माँ
घर का पूरा काम
मशगूल रहती है सुबह-शाम
भरते हुए
शेखचिल्ली और कोरिया जैसों के सत्व को अपने अंदर
बेवकूफ़ बनने-बनाने के लिए नहीं
पाने के लिए अपने हक को
मेहनत के बल पर

ख़बर मिली है
माँ का चेहरा खिला-खिला है
उसे नाज़ है
अपने उस होने का
जो वो हो पाई
और कोसा करती है
उस न होने को, जो वो नहीं हो पाई

ख़बर मिली है
मेरी माँ अब
गाँव गढ़ी में सबकी माँ है