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"तप रे मधुर-मधुर मन / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

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तप रे मधुर-मधुर मन !  
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तप रे मधुर-मधुर मन!  
विश्व वेदना में तप प्रतिपल,  
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:विश्व-वेदना में तप प्रतिपल,  
जग-जीवन की ज्वाला में गल,  
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:जग-जीवन की ज्वाला में गल,  
बन अकलुष, उज्जवल औ’ कोमल  
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:बन अकलुष, उज्ज्वल औ’ कोमल,
तप रे विधुर-विधुर मन !   
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::तप रे विधुर-विधुर मन!   
  
 
अपने सजल-स्वर्ण से पावन  
 
अपने सजल-स्वर्ण से पावन  
 
रच जीवन की मूर्ति पूर्णतम,  
 
रच जीवन की मूर्ति पूर्णतम,  
स्थापित कर जग में अपनापन;
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स्थापित कर जग में अपनापन,
ढल रे ढल आतुर मन !   
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:ढल रे ढल आतुर-मन!   
 
        
 
        
तेरी मधुर मुक्ति ही बंधन  
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:तेरी मधुर-मुक्ति ही बंधन,
गंध-हीन तू गंध-युक्त बन  
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:गंध-हीन तू गंध-युक्त बन,
निज अरूप में भर-स्वरूप, मन,  
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:निज अरूप में भर-स्वरूप, मन,  
मूर्तिमान बन, निर्धन !  
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::मूर्तिमान बन, निर्धन!  
गल रे गल निष्ठुर मन !   
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::गल रे गल निष्ठुर-मन!   
  
(जनवरी, 1932)
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रचनाकाल: जनवरी’ १९३२
 
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12:41, 10 मई 2010 का अवतरण

तप रे मधुर-मधुर मन!
विश्व-वेदना में तप प्रतिपल,
जग-जीवन की ज्वाला में गल,
बन अकलुष, उज्ज्वल औ’ कोमल,
तप रे विधुर-विधुर मन!

अपने सजल-स्वर्ण से पावन
रच जीवन की मूर्ति पूर्णतम,
स्थापित कर जग में अपनापन,
ढल रे ढल आतुर-मन!
       
तेरी मधुर-मुक्ति ही बंधन,
गंध-हीन तू गंध-युक्त बन,
निज अरूप में भर-स्वरूप, मन,
मूर्तिमान बन, निर्धन!
गल रे गल निष्ठुर-मन!

रचनाकाल: जनवरी’ १९३२