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"आते कैसे सूने पल / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

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:सागर-संगम में है सुख,  
 
:सागर-संगम में है सुख,  
 
:जीवन की गति में भी लय;
 
:जीवन की गति में भी लय;
मेरे क्षण-क्षण के लघु-कण  
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जीवन-लय से हों मधुमय।
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:जीवन-लय से हों मधुमय।
  
 
रचनाकाल: जनवरी’ १९३२
 
रचनाकाल: जनवरी’ १९३२
 
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12:55, 10 मई 2010 का अवतरण

आते कैसे सूने पल
जीवन में ये सूने पल!
जब लगता सब विशृंखल,
तृण, तरु, पृथ्वी, नभ-मंडल।
खो देती उर की वीणा
झंकार मधुर जीवन की,
बस साँसों के तारों में
सोती स्मृति सूनेपन की।
बह जाता बहने का सुख,
लहरों का कलरव, नर्तन,
बढ़ने की अति-इच्छा में
जाता जीवन से जीवन।
आत्मा है सरिता के भी,
जिससे सरिता है सरिता;
जल जल है, लहर लहर रे,
गति गति, सृति सृति चिर-भरिता।
क्या यह जीवन? सागर में
जल-भार मुखर भर देना!
कुसुमित-पुलिनों की क्रीड़ा-
ब्रीड़ा से तनिक ने लेना?
सागर-संगम में है सुख,
जीवन की गति में भी लय;
मेरे क्षण-क्षण के लघु-कण
जीवन-लय से हों मधुमय।

रचनाकाल: जनवरी’ १९३२