भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"देखूँ सबके उर की डाली / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
+ | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत | |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत | ||
पंक्ति 5: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | देखूँ सबके उर की डाली | + | देखूँ सबके उर की डाली-- |
− | किसने रे क्या | + | :किसने रे क्या क्या चुने फूल |
− | जग के | + | :जग के छबि-उपवन से अकूल? |
− | इसमें कलि, किसलय,कुसुम, शूल ! | + | :इसमें कलि, किसलय, कुसुम, शूल! |
+ | किस छबि, किस मधु के मधुर भाव? | ||
+ | किस रँग, रस, रुचि से किसे चाव? | ||
+ | कवि से रे किसका क्या दुराव! | ||
+ | :किसने ली पिक की विरह-तान? | ||
+ | :किसने मधुकर का मिलन-गान? | ||
+ | :या फुल्ल-कुसुम, या मुकुल-म्लान? | ||
+ | देखूँ सबके उर की डाली-- | ||
+ | :सब में कुछ सुख के तरुण-फूल, | ||
+ | :सब में कुछ दुख के करुण-शूल;-- | ||
+ | :सुख-दुःख न कोई सका भूल? | ||
− | + | रचनाकाल: फ़रवरी’ १९३२ | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
</poem> | </poem> |
13:05, 10 मई 2010 का अवतरण
देखूँ सबके उर की डाली--
किसने रे क्या क्या चुने फूल
जग के छबि-उपवन से अकूल?
इसमें कलि, किसलय, कुसुम, शूल!
किस छबि, किस मधु के मधुर भाव?
किस रँग, रस, रुचि से किसे चाव?
कवि से रे किसका क्या दुराव!
किसने ली पिक की विरह-तान?
किसने मधुकर का मिलन-गान?
या फुल्ल-कुसुम, या मुकुल-म्लान?
देखूँ सबके उर की डाली--
सब में कुछ सुख के तरुण-फूल,
सब में कुछ दुख के करुण-शूल;--
सुख-दुःख न कोई सका भूल?
रचनाकाल: फ़रवरी’ १९३२