भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"देखना! एक दिन / क्रांति" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=क्रांति |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> देखना! वह दिन ज़रूर आ…)
 
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
देखना! वह दिन ज़रूर आएगा
+
देखना! एक दिन ज़रूर आएगा
 
जब औरत सिर्फ़ इसलिए
 
जब औरत सिर्फ़ इसलिए
 
गुनाह के कटघरे में नहीं खड़ी होगी
 
गुनाह के कटघरे में नहीं खड़ी होगी

01:54, 11 मई 2010 के समय का अवतरण

देखना! एक दिन ज़रूर आएगा
जब औरत सिर्फ़ इसलिए
गुनाह के कटघरे में नहीं खड़ी होगी
क्योंकि वह औरत है

और न ही आदमी बैठेगा
इंसाफ़ की कुर्सी पर
सिर्फ़ इसलिए कि वह आदमी है।

देखना! वह दिन ज़रूर आएगा
जब आदमी अपने सच का इस्तेमाल
ढाल की तरह और
औरत के सच का इस्तेमाल
तलवार की तरह नहीं कर पाएगा।

देखना! वह दिन जरूर आएगा।