"पथ न भूल जाना (पैरोडी) / बेढब बनारसी" के अवतरणों में अंतर
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बेढब बनारसी }} {{KKCatKavita}} <poem> <poem>) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | संध्या की पश्चिम में लाली | ||
+ | श्यामता लिए जब आयेगी | ||
+ | फूलों का हार लिए मालिन | ||
+ | गजरा-गजरा चिल्लायेगी | ||
+ | उन दोनों की सुषमा लखकर | ||
+ | पथ भूल न जाना पथिक कहीं | ||
+ | जिस समय बिहंगम बालाएं | ||
+ | संगीतों के मृदु स्वर भारती | ||
+ | जिस समय किरण स्वर्णिम सुखकर | ||
+ | पुष्पों का मुख रंजित करती | ||
+ | सुस्मित गुलाब को देख-देख | ||
+ | पथ भूल न जाना पथिक कहीं | ||
+ | जब ढीला पाजामा छोड़े | ||
+ | या चुन्नटदार पहन धोती | ||
+ | घर से निकालो चमकाकर मुख | ||
+ | जैसे कलचरके हों मोती | ||
+ | निज श्रृंगारों की सुषमा में | ||
+ | पथ भूल न जाना पथिक कहीं | ||
+ | खाने को पान तमोलीकी | ||
+ | दूकानके निकट जाओगे | ||
+ | कर अधर लाल, खाकर जर्दा | ||
+ | मुख से सुगंध बगाराओगे | ||
+ | दर्पण में निज प्रतिबिम्ब देख | ||
+ | पथ भूल न जाना पथिक कहीं | ||
+ | पथ पर बैठे होंगे चाटों . . . | ||
+ | को लेकर खोंचेवाले भी | ||
+ | गुलगप्पे दहीबड़े आलू , | ||
+ | होंगे सब भरे मसाले भी | ||
+ | मुख में पानी यदि भर आये | ||
+ | पथ भूल न जाना पथिक कहीं | ||
+ | सिनेमाघर पर जब टिकटके . . . | ||
+ | पथ भूल न जाना पथिक कहीं | ||
+ | लिए उत्सुक भीड़ बड़ी होगी | ||
+ | उत्कंठा में महिलाओंकी भी | ||
+ | अलग जमात खड़ी होगी | ||
+ | तब पिया मिलन के गाने में | ||
+ | पथ भूल न जाना पथिक कहीं | ||
+ | कवि सम्मलेन में कविता सुन | ||
+ | जब लोग वाह करते होंगे | ||
+ | हस्ताक्षर लेने को जब कोमल | ||
+ | कर-पल्लव बढ़ते होंगे | ||
+ | ओटोग्राफों के लिखने में | ||
+ | पथ भूल न जाना पथिक कहीं | ||
+ | स्टेशन पर नत नयन किये | ||
+ | महिलायें अगर बिदाई दें | ||
+ | डब्बों के वातायन से जब | ||
+ | चन्द्रानन तुम्हे दिखाए दें | ||
+ | तब इधर-उधर की उलझन में | ||
+ | पथ भूल न जाना पथिक कहीं | ||
+ | गति चंचल आती जाती हो | ||
+ | जब कोई अंग्रेजी बाला | ||
+ | अधरों को लाल रंगे,पाउडर | ||
+ | मुख पर, नयनों में हाला | ||
+ | ऊंचे 'स्कर्ट' निरख करके | ||
+ | पथ भूल न जाना पथिक कहीं | ||
<poem> | <poem> |
00:42, 13 मई 2010 का अवतरण
संध्या की पश्चिम में लाली
श्यामता लिए जब आयेगी
फूलों का हार लिए मालिन
गजरा-गजरा चिल्लायेगी
उन दोनों की सुषमा लखकर
पथ भूल न जाना पथिक कहीं
जिस समय बिहंगम बालाएं
संगीतों के मृदु स्वर भारती
जिस समय किरण स्वर्णिम सुखकर
पुष्पों का मुख रंजित करती
सुस्मित गुलाब को देख-देख
पथ भूल न जाना पथिक कहीं
जब ढीला पाजामा छोड़े
या चुन्नटदार पहन धोती
घर से निकालो चमकाकर मुख
जैसे कलचरके हों मोती
निज श्रृंगारों की सुषमा में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं
खाने को पान तमोलीकी
दूकानके निकट जाओगे
कर अधर लाल, खाकर जर्दा
मुख से सुगंध बगाराओगे
दर्पण में निज प्रतिबिम्ब देख
पथ भूल न जाना पथिक कहीं
पथ पर बैठे होंगे चाटों . . .
को लेकर खोंचेवाले भी
गुलगप्पे दहीबड़े आलू ,
होंगे सब भरे मसाले भी
मुख में पानी यदि भर आये
पथ भूल न जाना पथिक कहीं
सिनेमाघर पर जब टिकटके . . .
पथ भूल न जाना पथिक कहीं
लिए उत्सुक भीड़ बड़ी होगी
उत्कंठा में महिलाओंकी भी
अलग जमात खड़ी होगी
तब पिया मिलन के गाने में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं
कवि सम्मलेन में कविता सुन
जब लोग वाह करते होंगे
हस्ताक्षर लेने को जब कोमल
कर-पल्लव बढ़ते होंगे
ओटोग्राफों के लिखने में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं
स्टेशन पर नत नयन किये
महिलायें अगर बिदाई दें
डब्बों के वातायन से जब
चन्द्रानन तुम्हे दिखाए दें
तब इधर-उधर की उलझन में
पथ भूल न जाना पथिक कहीं
गति चंचल आती जाती हो
जब कोई अंग्रेजी बाला
अधरों को लाल रंगे,पाउडर
मुख पर, नयनों में हाला
ऊंचे 'स्कर्ट' निरख करके
पथ भूल न जाना पथिक कहीं