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"आम के पत्ते (कविता) / रामदरश मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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वह जवान आदमी
 
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बहुत उत्साह के साथ पार्क में आया
 
बहुत उत्साह के साथ पार्क में आया
एक पेड़ की बहुत सारी पत्तियां तोड़ीं
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एक पेड़ की बहुत सारी पत्तियाँ तोड़ीं
 
और जाते हुए मुझसे टकरा गया
 
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पूछा-
 
पूछा-
 
अंकल जी, ये आम के पत्ते हैं न
 
अंकल जी, ये आम के पत्ते हैं न
 
नहीं बेटे, ये आम के पत्ते नहीं हैं
 
नहीं बेटे, ये आम के पत्ते नहीं हैं
कहां मिलेंगे पूजा के लिए चाहिए
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इधर तो कहीं नहीं मिलेंगे
 
इधर तो कहीं नहीं मिलेंगे
हां, पास के किसी गांव में चले जाओ
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हाँ, पास के किसी गाँव में चले जाओ
 
वह पत्ते फेंककर चला गया
 
वह पत्ते फेंककर चला गया
 
मैं सोचने लगा-
 
मैं सोचने लगा-
अब हमारी सांस्कृतिक वस्तुएं
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अब हमारी सांस्कृतिक वस्तुएँ
वस्तुएं न रह कर
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वस्तुएँ न रह कर
जड़ धार्मिक प्रतीक बन गयी हैं
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जड़ धार्मिक प्रतीक बन गई हैं
जो हमारे पूजा पाठ में तो हैं
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जो हमारे पूजा-पाठ में तो हैं
 
किन्तु हमारी पहचान से गायब हो रही हैं।
 
किन्तु हमारी पहचान से गायब हो रही हैं।
 
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09:57, 14 मई 2010 का अवतरण

वह जवान आदमी
बहुत उत्साह के साथ पार्क में आया
एक पेड़ की बहुत सारी पत्तियाँ तोड़ीं
और जाते हुए मुझसे टकरा गया
पूछा-
अंकल जी, ये आम के पत्ते हैं न
नहीं बेटे, ये आम के पत्ते नहीं हैं
कहाँ मिलेंगे पूजा के लिए चाहिए
इधर तो कहीं नहीं मिलेंगे
हाँ, पास के किसी गाँव में चले जाओ
वह पत्ते फेंककर चला गया
मैं सोचने लगा-
अब हमारी सांस्कृतिक वस्तुएँ
वस्तुएँ न रह कर
जड़ धार्मिक प्रतीक बन गई हैं
जो हमारे पूजा-पाठ में तो हैं
किन्तु हमारी पहचान से गायब हो रही हैं।