"खारे क्यों रहे सिंधु! / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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होती है न प्राण की प्रतिष्ठा | होती है न प्राण की प्रतिष्ठा | ||
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न वेदी पर | न वेदी पर | ||
देवता का विग्रह जब | देवता का विग्रह जब | ||
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खण्डित हो जाता है। | खण्डित हो जाता है। | ||
वृन्त से झड़कर जो | वृन्त से झड़कर जो | ||
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फूल सूख जाता है, | फूल सूख जाता है, | ||
उसको कब माली | उसको कब माली | ||
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माला में गूँथ पाता है? | माला में गूँथ पाता है? | ||
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लेकर बुझा दीप | लेकर बुझा दीप | ||
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कौन भक्त ऐसा है | कौन भक्त ऐसा है | ||
कौन उससे पूजा की | कौन उससे पूजा की | ||
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आरती सजाता है? | आरती सजाता है? | ||
मानव की अपनी | मानव की अपनी | ||
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उद्देश्यहीन यात्रा पर | उद्देश्यहीन यात्रा पर | ||
टूटे सपनों का भार | टूटे सपनों का भार | ||
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ढोता थक जाता है। | ढोता थक जाता है। | ||
मोती रचती है सीप | मोती रचती है सीप | ||
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मूँगे हैं, माणिक हैं | मूँगे हैं, माणिक हैं | ||
वैभव तुम्हारा रत्नाकर | वैभव तुम्हारा रत्नाकर | ||
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कहलाता है। | कहलाता है। | ||
दिनकर किरणों से | दिनकर किरणों से | ||
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अभिनन्दन करता है नित्य | अभिनन्दन करता है नित्य | ||
चन्द्रमा भी चाँदनी से | चन्द्रमा भी चाँदनी से | ||
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चन्दन लगाता है। | चन्दन लगाता है। | ||
निर्झर नद-नदियों का | निर्झर नद-नदियों का | ||
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स्नेह तरल मीठा जल | स्नेह तरल मीठा जल | ||
तुझको समर्पित हो | तुझको समर्पित हो | ||
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तुझ में मिल जाता है। | तुझ में मिल जाता है। | ||
कौन सी कृपणता है | कौन सी कृपणता है | ||
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खारे क्यों रहे सिंधु! | खारे क्यों रहे सिंधु! | ||
याचक क्यों एक घूँट | याचक क्यों एक घूँट | ||
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तुझसे न पाता है? | तुझसे न पाता है? | ||
-प्रथम आयाम | -प्रथम आयाम |
21:27, 3 मार्च 2007 का अवतरण
लेखिका: महादेवी वर्मा
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खारे क्यों रहे सिंधु!
होती है न प्राण की प्रतिष्ठा न वेदी पर
देवता का विग्रह जब खण्डित हो जाता है।
वृन्त से झड़कर जो
फूल सूख जाता है,
उसको कब माली माला में गूँथ पाता है?
लेकर बुझा दीप कौन भक्त ऐसा है
कौन उससे पूजा की आरती सजाता है?
मानव की अपनी उद्देश्यहीन यात्रा पर
टूटे सपनों का भार ढोता थक जाता है।
मोती रचती है सीप
मूँगे हैं, माणिक हैं
वैभव तुम्हारा रत्नाकर कहलाता है।
दिनकर किरणों से अभिनन्दन करता है नित्य
चन्द्रमा भी चाँदनी से चन्दन लगाता है।
निर्झर नद-नदियों का स्नेह तरल मीठा जल
तुझको समर्पित हो तुझ में मिल जाता है।
कौन सी कृपणता है खारे क्यों रहे सिंधु!
याचक क्यों एक घूँट तुझसे न पाता है?
-प्रथम आयाम