भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"भूमिका में कविता / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार=मुकेश मानस |
+ | |संग्रह=पतंग और चरखड़ी / मुकेश मानस | ||
}} | }} | ||
− | {{ | + | {{KKCatKavita}} |
<poem> | <poem> | ||
जिन बच्चों के पास | जिन बच्चों के पास |
11:55, 14 मई 2010 के समय का अवतरण
जिन बच्चों के पास
चरखड़ी और पतंग नहीं थी
उन बच्चों ने खुद को
चरखड़ी बना लिया
और खुद को ही पतंग
वो बच्चे अभी तक
खुशियों के अम्बर को
छूने की कोशिश में लगे हैं
बार-बार गिरते
बार-बार उठते
उन्हीं बच्चों में
शामिल है ये कवि
और उसकी कविता
रचनाकाल : 2001