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शोरगुल डूब गया और मैं आ गया मंच पर | शोरगुल डूब गया और मैं आ गया मंच पर |
22:36, 14 मई 2010 के समय का अवतरण
शोरगुल डूब गया और मैं आ गया मंच पर
द्वार से उगँठ कर दूरस्थ प्रतिध्वनियों में
अनुमान कर सकने की चेष्टा में हूँ मैं
कि क्या घटने वाला है आगे मेरे जीवन में।
रात की तमिस्रा हज़ारों ’ऑपेरा’-- आईनों से हो कर
जैसे केन्द्रित हो मुझ पर।
ओ परम पिता! यदि सम्भव हो तो
टल जाने दो इस पात्र को मेरे मुख तक आए बगैर।
मुझे प्यार है तुम्हारे सुदृढ़ उद्देश्य से।
मैं सहमत हूँ अपनी भूमिका करने को
किन्तु आज अभिनय हो रहा है एक अन्य नाटक का
और इसके लिए एक बार मुआफ़ कर दो मुझे।
लेकिन पूर्व निश्चित है अभिनय की योजना
और मुहरबंद है उसका अन्त, बिना किसी हेरफेर की सम्भावना के।
ज़िन्दगी आसान नहीं है किसी मैदान को चलकर पार करने की तरह।
अंग्रेज़ी भाषा से अनुवाद : अनुरंजन प्रसाद सिंह