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"प्रेम में पड़ी लड़की-1 / प्रदीप जिलवाने" के अवतरणों में अंतर

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जैसे उपस्थित हो वहीं
 
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रोशनी का समन्दर गुहा
 
रोशनी का समन्दर गुहा
जिसमें डूभकर
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पार कर ही
 
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मिल; सकती है
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अपनी धरती
 
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अपना आकाश।
 
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20:20, 15 मई 2010 का अवतरण

प्रेम में पड़ी लड़की
ठीक से अपनी रोटियाँ भी नहीं बेल पाती
अक्सर भूल जाती है
दाल में नमक
चाय में चीनी

मिलते ही एकान्त
ताकने लगती है शून्य
जैसे उपस्थित हो वहीं
रोशनी का समन्दर गुहा
जिसमें डूबकर
पार कर ही
मिल सकती है
अपनी धरती
अपना आकाश।