भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पतंग और चरखड़ी (कविता) / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: पतंग और चरखड़ी 1 वो पतंग लाया वो लाया चरखड़ी चरखड़ी मुझे थमाई उसन…)
 
छो ("पतंग और चरखड़ी (कविता) / मुकेश मानस" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 8 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
पतंग और चरखड़ी
+
{{KKGlobal}}
 
+
{{KKRachna
 
+
|रचनाकार=मुकेश मानस
 +
|संग्रह=पतंग और चरखड़ी / मुकेश मानस
 +
}}
 +
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
1  
 
1  
 
वो पतंग लाया
 
वो पतंग लाया
पंक्ति 29: पंक्ति 33:
 
बच्चे हैं बहुत
 
बच्चे हैं बहुत
 
पतंगें हैं कम
 
पतंगें हैं कम
चरखड़ियां तो और भी कम
+
चरखड़ियाँ तो और भी कम
चरखड़ियों में धगा
+
चरखड़ियों में धागा
 
बहुत-बहुत कम
 
बहुत-बहुत कम
  
कहां गई पतंगें?
+
कहाँ गई पतंगें?
कहां गई चरखड़ियां?
+
कहाँ गई चरखड़ियां?
कहां गया धागा?
+
कहाँ गया धागा?
 
1997
 
1997
  
पंक्ति 47: पंक्ति 51:
  
 
जिनके पास चरखड़ी नहीं होती
 
जिनके पास चरखड़ी नहीं होती
वो खुद चरखड़ी बन जाते हैं
+
वो ख़ुद चरखड़ी बन जाते हैं
 
और कवि की कविता में
 
और कवि की कविता में
 
पतंग उड़ाते हैं।  
 
पतंग उड़ाते हैं।  
 
1999
 
1999
 +
<poem>

20:55, 16 मई 2010 के समय का अवतरण

1
वो पतंग लाया
वो लाया चरखड़ी

चरखड़ी मुझे थमाई
उसने पतंग उड़ाई

उसने हमेशा पतंग उड़ाई
मैंने बस चरखड़ी हिलाई
1985

2
बच्चों के पास पतंग थी
तो चरखड़ी नहीं थी

बच्चों के पास चरखड़ी थी
तो पतंग नहीं थी

पतंग और चरखड़ी
एक साथ पाने का सपना
बच्चों के पास हमेशा था
1996


3
बच्चे हैं बहुत
पतंगें हैं कम
चरखड़ियाँ तो और भी कम
चरखड़ियों में धागा
बहुत-बहुत कम

कहाँ गई पतंगें?
कहाँ गई चरखड़ियां?
कहाँ गया धागा?
1997


4
जिनके पास चरखड़ी होती है
वे पतंग उड़ाना सीख ही जाते हैं

जिनके पास चरखड़ी नहीं होती
वे शायद ही पतंग उड़ा पाते हैं

जिनके पास चरखड़ी नहीं होती
वो ख़ुद चरखड़ी बन जाते हैं
और कवि की कविता में
पतंग उड़ाते हैं।
1999