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"प्रेम में पड़ी लड़की-1 / प्रदीप जिलवाने" के अवतरणों में अंतर
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ताकने लगती है शून्य | ताकने लगती है शून्य | ||
जैसे उपस्थित हो वहीं | जैसे उपस्थित हो वहीं | ||
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− | जिसमें डूबकर | + | जिसमें डूबकर/पार कर ही |
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मिल सकती है | मिल सकती है | ||
अपनी धरती | अपनी धरती | ||
अपना आकाश। | अपना आकाश। | ||
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11:06, 17 मई 2010 के समय का अवतरण
प्रेम में पड़ी लड़की
ठीक से अपनी रोटियाँ भी नहीं बेल पाती
अक्सर भूल जाती है
दाल में नमक
चाय में चीनी
मिलते ही एकान्त
ताकने लगती है शून्य
जैसे उपस्थित हो वहीं
रोशनी का समन्दर/गुहा
जिसमें डूबकर/पार कर ही
मिल सकती है
अपनी धरती
अपना आकाश।