भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बिचौलिये / प्रदीप जिलवाने" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप जिलवाने |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> अधिकांश लोग न…)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:59, 17 मई 2010 के समय का अवतरण

अधिकांश लोग नहीं जानते
कि बिचौलिये
जब राहत बाँटते हैं
चाँदी काटते हैं

संधि-पत्र जब हस्तांतरित किए जाते हैं
उनकी हथेलियाँ गर्म होती हैं
संवेदना से उनका
दूर-दूर तक कोई नाता नहीं होता
परन्तु इस विषय पर बोल सकते हैं वे
घंटों.... सतत्...

अधिकांश लोग नहीं जानते
कि बुद्धू-बक्सा जो ख़बरें सुना रहा है
उनमें भी बिचौलियों का हाथ हो सकता है।
बाज़ार में बाकायदा तय दरों पर मिल जाते हैं बिचौलिये
या वे ख़ुद ही जगह बना लेते हैं
आपके और बाज़ार के बीच

एक बड़ा परिवर्तन आया है इधर भी
अब आप इन्हें नहीं पहचान सकते
इनके पहरावे से या भाषा से।

क्या तुम विश्‍वास करोगे?
बिचौलिये ही बारिश लाते हैं
फिर जाड़े का मौसम
और फिर चिलचिलाती धूप
बिचौलिये हर जगह, हर देश में मिल जाएँगे तुम्हें
सिफ़ारिशी ख़त और बंद लिफ़ाफ़े के साथ....।