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"इस धूप की नयी रंगत / अलका सर्वत मिश्रा" के अवतरणों में अंतर

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ये दो फूल
+
इस  
जिनमें खो जाते हैं हम अक्सर
+
धूप की नई रंगत ने
हमें इस कदर लुभाते हैं
+
मज़बूर कर दिया है अब
कि हम भूल जाते हैं,
+
ये सोचने पर
इन्हें मिल जाना है  
+
कि फ़िजा बदलने लगी है
मिट्टी में ही
+
अब बदलना चाहिए हमें
+
अपना भी तौर-तरीका
ये खिलेंगे मगर
+
खान-पान
उपवन में ही
+
रहन-सहन
हम कितना भी कर लें जतन
+
आदतें
समर्पित कर दें अपना जीवन
+
और रवायतें भी
तन-मन-धन
+
वक़्त
और गृह वन
+
आ गया है।
सिर्फ़ इनकी एक मुस्कान के लिए
+
किन्तु
+
परन्तु
+
व्यर्थ है सारी लगन
+
सूना ही लगता है अपना आँगन
+
और  
+
तरसते हैं हमारे कर्ण
+
इनकी खिलखिलाहट के लिए
+
 
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12:23, 19 मई 2010 के समय का अवतरण

इस
धूप की नई रंगत ने
मज़बूर कर दिया है अब
ये सोचने पर
कि फ़िजा बदलने लगी है
अब बदलना चाहिए हमें
अपना भी तौर-तरीका
खान-पान
रहन-सहन
आदतें
और रवायतें भी
वक़्त
आ गया है।