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"फूँक देना न इसे काठ के अंबार के साथ / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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01:06, 21 मई 2010 का अवतरण
फूँक देना न इसे काठ के अंबार के साथ
साज़ यह हमने बजाया है बड़े प्यार के साथ
सिर्फ सुर ताल मिलाने से कुछ नहीं मिलता
तार दिल का भी मिलाओ कभी झंकार के साथ
प्यार की दी है सज़ा हमको मगर यह तो कहो
'क्या नहीं तुम भी हमेशा थे गुनहगार के साथ!'
यों तो नज़रों से सदा दूर ही रहता है कोई
आके लगता है गले दिल की एक पुकार के साथ
पंखड़ी में तेरी वह रंग न मिलता हो, गुलाब!
पर ये खुशबू न मिटेगी कभी बहार के साथ