भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आज हो चाहे दूर भी जाना, मेरे साथी मेरे मीत!/ गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुल…) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
[[category: ग़ज़ल]] | [[category: ग़ज़ल]] | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | |||
आज हो चाहे दूर भी जाना, मेरे साथी मेरे मीत! | आज हो चाहे दूर भी जाना, मेरे साथी मेरे मीत! | ||
लौटके फिर इस राह से आना, मेरे साथी मेरे मीत! | लौटके फिर इस राह से आना, मेरे साथी मेरे मीत! |
21:16, 21 मई 2010 का अवतरण
KKGlobal}}
आज हो चाहे दूर भी जाना, मेरे साथी मेरे मीत!
लौटके फिर इस राह से आना, मेरे साथी मेरे मीत!
कठपुतली का खेल दिखाने कोई हमें लाया था यहाँ
प्यार तो था बस एक बहाना, मेरे साथी मेरे मीत!
झाँझर नैया, डांडे टूटीं, नागिन लहरें, तेज हवा
टिक न सकेगा पाल पुराना, मेरे साथी मेरे मीत!
यों तो हरेक झोंके से हवा के, प्यार की खुशबू आती थी
दिल ने तुम्ही को एक था माना, मेरे साथी मेरे मीत!
मिल भी गए फिर आते-जाते, मिलके निगाहें फेर भी लो
गंध गुलाब की भूल न जाना, मेरे साथी मेरे मीत!