भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हमारा प्यार जी उठता, घड़ी मरने की टल जाती / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुल…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:44, 21 मई 2010 का अवतरण
{KKGlobal}}
हमारा प्यार जी उठता, घड़ी मरने की टल जाती
जो तुम नज़रों से छू लेते तो यह दुनिया बदल जाती
उन्हीं को ढूँढती फिरती थीं आँखें जानेवाले की
न करते इंतज़ार ऐसे, किसी की रात ढल जाती
हम उनकी बेरुखी को ही हमेशा प्यार क्यों समझें!
कभी तो मुस्कुरा देते, तबीयत ही बहल जाती
उन्हीं को चाहते हैं अपने सीने से लगा लें हम
की जिनकी याद आते ही छुरी है दिल पे चल जाती
वे दिन कुछ और ही थे जब गुलाब आँखों में रहते थे
बिना ठहरे ही डोली अब बहारों की गुज़र जाती