भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हमें तो हुक्म हुआ सर झुका के आने का / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुल…) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | {KKGlobal}} | + | {{KKGlobal}} |
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल | |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल | ||
|संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुलाब खंडेलवाल | |संग्रह=पँखुरियाँ गुलाब की / गुलाब खंडेलवाल | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatGhazal}} | |
<poem> | <poem> | ||
11:06, 22 मई 2010 का अवतरण
हमें तो हुक्म हुआ सर झुका के आने का
नहीं ख्याल भी उनको नज़र उठाने का
ये किस बहार की मंजिल पे रुक गए हैं क़दम
नज़र को आगे इशारा नहीं है आने का
निगाहें बढ़के लिपटती रहीं निगाहों से
चले तो वक्त नहीं था गले लगाने का
नहीं जो प्यार हो हमसे तो दोस्ती ही सही
गरज की कुछ तो बहाना हो मुस्कुराने का
गुलाब यों तो हजारों ही खिल रहे हैं यहाँ
है रंग और ही लेकिन तेरे दीवाने का