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"हमें तो हुक्म हुआ सर झुका के आने का / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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11:06, 22 मई 2010 का अवतरण


हमें तो हुक्म हुआ सर झुका के आने का
नहीं ख्याल भी उनको नज़र उठाने का

ये किस बहार की मंजिल पे रुक गए हैं क़दम
नज़र को आगे इशारा नहीं है आने का

निगाहें बढ़के लिपटती रहीं निगाहों से
चले तो वक्त नहीं था गले लगाने का

नहीं जो प्यार हो हमसे तो दोस्ती ही सही
गरज की कुछ तो बहाना हो मुस्कुराने का

गुलाब यों तो हजारों ही खिल रहे हैं यहाँ
है रंग और ही लेकिन तेरे दीवाने का