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"लाख चक्कर हों सुराही के, हमारा क्या है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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11:09, 22 मई 2010 का अवतरण
लाख चक्कर हों सुराही के, हमारा क्या है!
हम तो प्यासे रहे पानी के, हमारा क्या है!
उनकी महफ़िल है, शराब उनकी, प्याला उनका
हम तो दो घूँट चले पी के, हमारा क्या है!
उड़ रही है तेरे जूडे की जो खुशबू हर ओर
एक सिवा दिल की तसल्ली के, हमारा क्या है!
हंस के बहला भी लिया, रूठ के तड़पा भी दिया
हम हैं मुहरे तेरी बाजी के, हमारा क्या है!
जब कहा उनसे, 'खिले आज तो होठों पे गुलाब'
हँस के बोले कि हैं माली के, हमारा क्या है!