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"बहुत हमने चाहा कि दिल भूल जाये / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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11:44, 22 मई 2010 का अवतरण


बहुत हमने चाहा कि दिल भूल जाये
मगर तुम भुलाने में भी याद आये

किसी मोड़ पर ज़िन्दगी आ गयी थी
बढ़ा कारवाँ और हम रुक न पाये

नहीं उनको दिल से भुलाया है हमने
कई बार यों तो क़दम डगमगाये

कभी जो मिलें फिर तो पहचान लेना
नहीं तुमसे हम आज भी हैं पराये

तुम्हारी ही यादों की लौ जल रही थी
दिवाली के जब भी दिए जगमगाये

कभी अपने हाथों सँवारा था तुमने
गुलाब आज तक वैसे खिल ही न पाये